I will always remain your Mummy not a friend! 

10

परसों स्कूल की पेरेंट्स टीचर मीटिंग मे बात स्कूल बस ड्राइवर के साथ एक बच्चे द्वारा किये दुर्वयवहार की हो रही थी. बच्चे के पिता ने बहुत तेज़ आवाज़ मे उल्टा ड्राइवर को ही डांट दिया की वो बच्चों के साथ दोस्त की तरह व्यवहार किया करे और वो खुद भी इस ही करते हैं ताकि बच्चे खुश रहे. मेरे बेटे ने मुझसे घर आके कहा की क्या ऐसा होता है? अगर ऐसा होता है तो मैं उसके साथ दोस्तों की तरह व्यहवहार क्यों नहीं करती? मैंने हँसके उसको कहा , मैं मम्मी की तरह समझाती हूँ तभी तो तुम्हारी ऐसी शिकायतें नहीं आतीं हैं.अगर तुम स्कूल बस ड्राइवर को दोस्त समझके चलती बस मे हंसी मजाक करोगे तो कितने ही लोगो की जान खतरे मे रहेगी? मेरा बेटा मुस्कुरा दिया.

मैं दोस्त कैसे हो जाउंगी? मैंने तो अपने बच्चों को जन्म दिया है. मैं उनसे बड़ी हूँ, उनकी देखभाल की है और उनके हर कदम को एक एक करके आगे चलते देखा है. दोस्त तो हम उम्र होते हैं, खट्टे मीठे होते हैं, नादान होते हैं और हर पल के साथी होते हैं. पर मम्मी की तरह घर पे बैठ बच्चों के स्कूल से लौटने का इंतज़ार थोड़ी न करते हैं?

अगर मैं आज दोस्त बन के उनकी छोटी छोटी गलतियों को नजरअंदाज करके उनके साथ हंसती बोलती रहूंगी तो मेरी बेटी को कौन सिखाएगा की फ्रॉक नीचे करके बैठना चाहिए या फिर ये की कोई भरी दोपहरी मे घर मे सामान की डिलीवरी देने आये तो फ़ौरन दरवाजा न खोलके पहले चेक करना चाहिए.मेरा बेटा अभी कुछ दिनों पहले फेसबुक पे अपने दोस्तों से बातें कर रहा था और मैंने उसकी क्लासमेट का फोटो देखा. सारे बच्चे उसके मजाक उड़ा रहे थे पर मैंने अपने बेटे को समझाया की इस तरह का फोटो अगर तुम्हारी बहन पोस्ट करेगी तो तुमको कैसा लगेगा?

दिक्कत बच्चों का दोस्त बनने मे नहीं है, दिक्कत इस बात मे है की हम दोस्त बनके माता पिता बनना भूल गए हैं. एक उम्र होती है जब बच्चे भटकने लगते हैं और माता पिता दोस्त बनके दूर खड़े हो जाते हैं. ये काफी बुरा दौर होता है और ख़ास कर उन बच्चों के लिए जिनके पास कामकाजी माता पिता का कमाया बेहिसाब पैसा होता है, रोज़ नए दोस्त होते हैं पर अच्छी बुरी बात समझाने वाला कोई नहीं होता.

हम माता पिता जो बात सख्ती से, प्यार से और नियम से बच्चों को बड़े होने तक सिखा सकते हैं वो दुनिया का कोई स्कूल या दोस्त नहीं सिखा सकता.इसीलिए हमारा हमेशा माता पिता होना ज्यादा जरुरी है क्योंकि हमारा अनुभव हर कदम पे हमारे बच्चों के लिए जरुरी होता है. जिंदगी मे मौजमस्ती करने के लिए हमउम्र दोस्त तो हर कदम पे मिलेंगे पर सच्चा अनुभव और दिल से उनका हमेशा भला चाहने वाले माता पिता हमेशा साथ रहेंगे तो उनकी जिंदगी और आसान हो जाती है.

इसीलिए तो मेरा बेटा भी कहता है मुझसे की मम्मी मुझको स्कूल मे कोई भी परेशानी होती है तो मैं घबराता नहीं हूँ क्योंकि आप तो घर पे उस बात को सॉल्व करने मे हेल्प कर ही दोगी, दोस्त तो और परेशान कर देते हैं. घर से बाहर लड़कियों के साथ कैसा बर्ताव करना है, स्कूल बस ड्राइवर को आदर देना हो या फिर स्कूल टीचर्स का कहा मानना हो हर बात मेरा बेटा अच्छे से जानता है. मैंने माँ बनके सिखाया है उसको. मेरी बेटी को पता है की हर स्कूल टीचर पहले सुबह उठके अपने घर का काम निबटाती है और फिर स्कूल आके इतने सारे बच्चों को संभालती है इसीलिए उनको तंग नहीं करना चाहिए.

बच्चे बड़े होते हैं,उनके अंदर कितने ही शारीरिक और मानसिक बदलाव होते हैं पर मैंने देखा है की कितने ही माता पिता ये कहके ध्यान नहीं देते की आजकल तो गूगल पे कितनी कुछ ज्ञान की बातें बच्चे खुद ही पढ़ लेते हैं. सही कहते हैं पर क्या आपका बच्चा उनको सही मायने मे सीख पाता है?क्या उसका मासूम मन जिंदगी की बड़ी समस्याओं को झेलने मे सफल होने लायक तैयार हो पाता है?

इसीलिए मैं अपने बच्चों को दोस्त बनके कुछ नहीं सीखना या फिर सिखाना चाहती हूँ . मैं तो अधिकार से और पूरे सच्चे दिल से उनको जिंदगी भर यही बताती रहूंगी की क्या गलत है और क्या सही. मुझे पता है की अगर मैं दोस्त बन के उनसे दूर हो गयी तो फिर उनको गलत बातें सिखाने के लिए पूरी दुनिया मे बहुत लोग हैं जिनको मैं मौका नहीं देना चाहती.

आज मेरी डांट फटकार शायद मेरे दोनों बच्चों को बुरी लगे पर एक दिन वो इस बात की कदर करेंगे पर कम से कम मुझको भला बुरा तो नहीं कहेंगे की दोस्त बनके मैंने उनको अकेले भटकने के लिए छोड़ दिया या फिर उनकी बुरी बातों पे उनको समझाया क्यों नहीं. वो अभी छोटे हैं पर मैं तो बड़ी हूँ और उनकी दोस्त नहीं मम्मी हूँ. है न?

Leave a Reply