Tourism faults in India.

पिछले साल कई देशो को एक साथ देखने का मौका मिला तो इतने सारे अनुभव इकट्ठे हो गए की एक साथ सब लिख नहीं पायी. अब रह रह के कोई न कोई बात मन को कुरेद ही देती है. जैसे की कई लोगो ने इशारो इशारों में कहा “भारत पूरा देख लिआ क्या जो विदेश चले गए?”.

मन में तो बहुत आया की कह दूँ की मनाली गए थे तो विदेशिओं को ठगते हुए दूकानदार देखे जो एक नन्हा सा केक का टुकड़ा चार सौ पांच सौ में बेच रहे थे. जयपुर गए थे तो विदेशी महिला का ठेलेवाले को डांटना देखा था जो उसका हाथ पकड़ने की कोशिश किये जा रहा था. कोवलम गए थे तो इतने बड़े बीच पर एक भी सार्वजनिक शौचालय नहीं मिला न ही गीले कपडे बदलने की जगह.

कोवलम का बीच एक पहाड़ी नुमा स्थान से नीचे उतर के पहुंचा जाता है परन्तु पर्यटन विभाग के सरकारी अमले से ये नहीं होता की कोई करें या एम्बुलेंस आपात स्थिति के लिए वहां हमेशा रखें. कोच्ची का तो हाल बुरा है.घरेलु उड़ानों के एयरपोर्ट पर मोबाइल चार्जिंग के सॉकेट ख़राब पड़े रहते हैं. खाना नहीं मिलता. लाउंज बेहद महंगा है. पूवर आइलैंड जाओ तो वहां कोई सार्वजनिक शौचालय नहीं है न ही बोट्स की हालत सही है.

ये हाल मैं आपको वहां का बता रही हूँ जहाँ शिक्षा का स्तर बढ़िया मन जाता है. अगर आपने उत्तर प्रदेश के आगरा में गाँव के लोगों को विदेशी लोगों पर झपट कर छूते घूरते देख लिया तो आपके रोंगटे खड़े हो जायेंगे.

कन्याकुमारी में जिस तरह की गन्दी लाइफ जैकेट पहना के खतरनाक नावों में भर भर के टूरिस्टों को स्वामी विवेकानंद रॉक मेमोरियल तक ले जाया जाता है और वहां कोई भी आपातकालीन मेडिकल इमर्जेन्सी बोट नहीं उपलब्ध है उसे देख के भी भारत के केंद्रीय और राज्यों के पर्यटन मंत्रिओं की भ्रष्ट मानसिकता पर ग्लानि हो उठती है.हर जगह गलती नहीं ढूंढनी चाहिए परन्तु दो छोटे बच्चों की माँ होने के नाते सार्वजनिक सुविधाओंको ढूँढना कहाँ तक गलत है? क्यों नहीं हम विदेशी पर्यटकों को अकेला छोड़ देते की वो अपने आप को सुरक्षित महसूस करें?

भारत सरकार ने होटल व्यवसाय में इतने टेक्स लगा रखें हैं और पंचसितारा होटलों के मालिकों का माफिया इतना तगड़ा है की आप जितने रुपयों में त्रिवेंद्रम के ताज होटल में ठहरेंगे उतने में तो विदेशों के चार होटलों में ठहर आएंगे. कभी बैंकॉक की बाहरी सीमा की तरफ जाईये. कई बड़ी बड़ी दुकानों में सौ सौ वाशिंग मशीन और ड्रायर लगे मिलेंगे. ताकि पर्यटक अपने कपडे खुद धो लें सूखा लें.

फुकेत में चप्पे चप्पे पर क्लोज सर्किट केमेरा लगे हैं. बात सिर्फ सुबिधाओं की नहीं है. हम लोग अपनी सरकार पर भी जोर nahi देते की वो स्तिथि को सुधरे ताकि पर्यटन में बढ़ावा हो.

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