Akele purush ka ghar! (Hindi story) 


आजकल मन नहीं लगता बिलकुल. इतनी दूर परदेस में अकेले दिन काटना कितना मुश्किल भरा काम होता है कोई मुझसे पूछे जरा. पहले ऐसा नहीं था. मेरा दिन का काम फटाफट निबट जाता था और मेरी दक्षिण भारतीय पड़ोसन तिलोत्मा कुमारन का भी. हम दोनों सारा दिन या तो गप्पे लगाते, ऑनलाइन शॉपिंग करते या फिर किसी और सहेली के घर हो आते. 

फिर उसकी बेटी की शादी क्या हुयी लगा मेरी ही बेटी की शादी है. बड़ी खुश थी वो. इकलौता बेटा था दामाद. पिता भी नहीं थे और कोई भाई बहन भी नहीं था. अकेली माँ बेटे खूब बड़ी कोठी में रहते और पिता अतुलनीय जेवर जायदाद छोड़ परलोक सिधारे थे. मेरे मन में जरा सी नारी सुलभ शंकाएं भी उठी परंतु तिलोत्तमा की ख़ुशी देख वो सब दब गयीं.

वो बार बार सुनाती की सौन्दर्या(उसकी बेटी) की सास को घर के काम खुद करने की आदत है तो नयी नयी इंजीनियर बनी सौन्दर्या तो आराम से नौकरी कर लेगी.घर के काम का झंझट नहीं है और न ही ससुर, जेठ,देवर या फिर ननद की फ़िक्र होगी.लड़की आराम से राज़ करेगी. 

हम तो शादी में जा नहीं पाए क्योंकि बार बार भारत जाना संभव नहीं होता तो ऑनलाइन ही शादी के फोटो देख के खुश हो गए की चलो बिटिया की शादी खूब धूम धाम से हो गयी. माँ बाप भी ख़ुशी ख़ुशी वापस आ गए सारे काम निपटा के. तिलोत्तमा की आंखें गर्व से चमक रही थीं बताते बताते की सौन्दर्या की सास के पास कम से कम बीस किलो सोना होगा. बड़े सुख से रहेगी सौन्दर्या इतनी बड़ी कोठी में. 

दबी जबान में वो ये भी बता गयी की उसकी ननद की बेटी के लिए ये रिश्ता आया था पर उसके बेवकूफ ननदोई ने ये देख के शादी से मन कर दिया की इनके घर में कोई पुरुष और नहीं है. भला ये क्या बात हुयी कहके तिलोत्तमा ने ये रिश्ता लपक लिया था. पर उसकी ननद को शादी में बहुत बुरा लग रहा था की सौन्दर्या की शादी उसी लड़के से हो रही है. तिलोत्तमा के ननदोई कितने समझदार आदमी थे ये मुझे बाद में पता चल गया. 

कुछ दिनों बाद ही एक दिन सुबह सुबह तिलोत्तमा फ्लाइट पकड़ के भारत चली गयी. उसके पति ने बताया की सौन्दर्या की सास रसोई में फिसल गयी हैं और सौन्दर्या हनीमून के लिए यूरोप गयी है तो उसका और  दामाद का फ़ोन आया था. सुनके बड़ा दुःख हुआ पर ख़ुशी भी हुयी की चलो अब इनका सहारा मिल गया दामाद को. कोई बीस पच्चीस दिनों बाद धुप में काली सिकी हुयी दुबली-पतली तिलोत्तमा वापस लौटी तो उसको सो कर थकान उतरने में  पूरे दो हफ्ते लग गए.

 उसने बताया की इतने बड़े बगीचे के बीच भव्य अट्टालिका सामान बंगले में सौन्दर्या की सास ने नाम मात्र के नौकर रखे हुए थे और  कोई दो सौ पेड़ों से नारियल और बाकी फल सब्ज़ी उतरवाना, गिनके बाजार भिजवाना, सफाई करवाना और सौन्दर्या की सास की देखभाल करना कोई आसान काम नहीं था. किसी ज़माने में कोई नौकर डेढ़ सौ रुपए की साईकिल चुरा भाग गया था, इसीलिए  उस विशाल घर में कुल जमा दो नौकर थे जिनको पूरी झाड़ पोंछी के बाद अंदर आने दिया जाता था और बाहर भी इसी तरह जाने दिया जाता था. सुन कर बड़ा तरस आया मुझको अपनी पड़ोसन पर. पर चलो अब सौन्दर्या हनीमून से लौट आयी है तो सब कुछ संभाल ही लेगी सोचके तिलोत्तमा और मैं दोनों निश्चिन्त हो गए. 

अभी कुल जमा चार हफ्ते गुजरे थे की तिलोत्तमा के पति भारत चले गए. अब कहानी ये थी की सौन्दर्या की सास की आँखों में मोतियाबिंद पक आया और आपरेशन अचानक करवाना जरुरी था. दामाद जापान चले गए ट्रेनिंग के लिए और दो हफ्ते बाद तिलोत्तमा के पति भी काले झुलसे धुप में सिके हुए वापस लौटे. किसी भी रिश्तेदार पुरुष को घर में आने की मनाही थी क्योंकि उनके दामाद को ये बात पसंद नहीं थी. पर ससुर पे अगाध स्नेह था इसीलिए उसने जापान से फ़ोन करके ससुर को जिम्मेदारी सौंपी थी की उसकी माँ का ऑपरेशन करवा के आएं. जो आदमी मरसिडीज़ चलाके ऑफिस जाता हो अब वो सौन्दर्या की सास को लेके ऑटो में घूम रहे थे क्योंकि सौन्दर्या की सास को जिस डॉक्टर पे पूरा भरोसा था उसका क्लीनिक किसी पतली अँधेरी गली में जाके था. 

भाई साहेब बड़े उपकृत थे की नया दामाद उनपे भरोसा करता है. ये बात अलग थी की उनको बंगले के सारे बगीचे की देखभाल भी करनी पड़ी थी. जो आदमी अपनी पत्नी के परदेस के घर में रखे जरा से तुलसी के पौधे में दो कटोरी पानी रोज़ नहीं  दे  पाता था वो बेटी की ससुराल में बारह एकड़ के बगीचे में पानी लगाने सुबह चार बजे उठता होगा सोचके ही मन में क्या भावना आयी आपको में बता ही नहीं सकती. 

खैर थोड़े दिनों बाद दोनों पति पत्नी फिर फ्लाइट में सवार हो गए क्योंकि दामाद और बेटी अमरीका जा रहे थे तो उनके बंगले में सीसीटीवी लगवाये जाने थे, ऑटोमेटिक गेट लगवाना था. जिस बंगले की शानोशौकत देख के उन्होंने बेटी ब्याही थी अब उसी बंगले के देखभाल के मैनेजर बन गए थे दोनों पति पत्नी. जो तिलोत्तमा सुबह पति की चाय नाश्ता बना सारा सारा दिन सोफे पे बैठ यहाँ मेरे साथ  गपपें  लगाती थी अब ऑटो पकड़ के बेटी की ससुराल के बगीचे की फल सब्ज़ी के लिए बोरे कट्टे खरीदने बाज़ार जाती और सौन्दर्या की सास को एक एक कौड़ी का हिसाब देती है. क्योंकि वहां कोई घर में पुरुष नहीं है तो बेटी के साथ उसका ससुराल भी तो संभालना पड़ेगा ही. 

आजकल यही सोचती रहती हूँ की समझदार कौन है तिल्लोत्मा या फिर उसके ननदोई? क्या उनका कहना सही था की एक पुरुष वाला घर किसी काम का नहीं? अगर सौन्दर्या के ससुर जिन्दा होते या फिर उसके पति के एक दो भाई और होते तो कितनी सारी जिम्मेदारियां अपने आप ही पूरी हो जाती बिना कहे.शायद इसीलिए पहले के जमाने में लोग भरे पुरे बड़े परिवार में लड़कियां ब्याहना पसंद करते थे. 

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