AWDC_ART_MOVIES ADWC shatranjkekhiladi shatranjkekhilarireview शतरंज के खिलाड़ी रिलीज़्ड – 1977 निर्देशक – सत्यजीत रे कास्ट – अमजद खान – नवाब वाजिद अली शाह संजीव कुमार – नवाब सज्जाद ali सईद जाफरी – नवाब रोशन अली रिचर्ड एटेनबरो – जेनरल ऑट्रम शबाना आज़मी – खर्शीद फरीदा जलाल – उनका नाम नहीं याद फार्रुख शेख – आबिद या अकील डेविड अब्राहम – मुंशी नंदराम टॉम ऑल्टर – कैप्टेन लीला मिश्रा – हिरिया नौकरानी शबाना आजमी की फिल्म के शूटिंग स्थल – लखनऊ मुरादाबाद इस फिल्म की हैरानी वाली बातें – १- सईद जाफरी ने लॉबिंग करके अमजद खान को मिलने वाला सहायक अभिनेता का पुरुस्कार हथिया लिया था। जिसके लिए अमजद खान कभी उन्हें माफ़ नहीं कर पाए। २- इस फिल्म के एक सीन में सईद जाफरी संजीव कुमार पर गोली चलाते हैं और शाल फट जाता है। शाल किसी नवाब के पोते जोकि फैशन डिज़ाइनर था उस के प्राइवेट म्यूजियम से लिया गया था। तो वो सीन फिल्माने के लिए शाल के ऊपर हल्का सा पैच लगा के उसको उधड़ा हुआ दिखाया गया था। ३- शबाना आजमी को पतिव्रता और फरीदा जलाल को खिलंदड़ी पत्नी के रोल में दिखाने के लिए उनके पोशाकों के रंगो को चुना गया था। शबाना को पेस्टल गंभीर तो वहीँ फरीदा जलाल को चटख गुलाबी लाल कपडे पहनाएँ गए थे। ४- डेविड अब्राहम वाला सीन फिलमाया जा चूका था पर तभी सत्यजीत रे को टोपी पहनने का एक ढंग पता चला की किसी बाहर वाले के आने से घर की टोपी बदल कर दूसरी टोपी पहनी जाती थी तो इस सीन को दोबारा फिल्माया गया था। ५- इस फिल्म को लगभग सभी बड़े देशों में भारतीय दूतावासों द्वारा प्राइवेट स्क्रीनिंग के लिए चुना जा चुका है। फिल्म के बारे में – फिल्म अंग्रेजी सल्तनत और अवध के नवाब वाजिद अली शाह के बीच की राजनितिक कश्मकश से गुजरती है और दो रईस जादों के शतरंज के खेल के प्रति दीवानगी के बारे में है , ये फिल्म अमीर लोगों के बीच फैले अकेलेपन को इंगित करती है। उनको बस अपने से मतलब ह। एक की पत्नी शतरंज के पास उठा के फेंक देती है तो वो नीम्बू टमाटर सुपारी से खेलने लगते है। वहीँ दूसरे की बीवी अकेलेपन से उकता कर पति के भांजे से दिल लगा बैठती है। पकड़ी भी जाती है। इस फिल्म को देखते हुए देश भक्त लोगो को अंग्रेज़ो की मक्कारी देखकर खून भी उबलता है और जब अमजद खान अपनी पगड़ी उतार का अंग्रेज़ जनरल को पेश करते हैं तो देशभक्त लोगों की आँखों से आंसू बह निकलते है।समझ नहीं आता की क्या कर बैठे? अमजद खान ने ये किरदार निभाया नहीं था, हर पल इसको जिया था। कहते हैं की उन्होंने कत्थक करने वालों की चाल देख कर उसको कॉपी किया फिर अपनी खड़े होने की और चलने की एक्टिंग की थी। वो कई सारे सीन्स में आपको साफ़ नजर आएगा ही। ये फिल्म महान बंगाली निर्माता निर्देशक सत्यजीत रे ने बनाई थी और इस फिल्म में काम करने वाले लगभग सभी कलाकारों ने उनका नाम सुनकर लगभग मना कर दिया था। पर हर किरदार के लिए सत्यजीत रे ने जिसको भी सोचा था उसी को अच्छे से कन्विंस करके फिल्म में लेकर आये और शानदार अभिनय करवाया। एक सीन है जिसमे शबाना आजमी अपनी नौकरानी को कहानी सुनाने के लिए कहती हैं और रो पड़ती है। वहां आपको एक महिला के एकाकीपन का अंदाजा अपने दिल में महसूस होगा वही हुक्का भरने के लिए संजीव कुमार का उठकर अपने शाल और पाजामे से संघर्ष करते हुए एक गांव के घर के अंदर जाना उस समय को जीने पर मजबूर करता है। अटेंशन टू द डीटेल नाम की हर वो चीज़ है जो इस फिल्म को कालजई बना गई। पानदान के लड़िओं में गुंथे हुई पान की एक लॉन्ग वाली गिलौरियां हों या फिर मटके में आते कबाब रोटी। एक बंगाली फिल्म निर्देशक का लखनऊ के रंग में रंगकर अवध के इतिहास से जूझती फिल्म बनाना उनका बेबाक और संगठित निर्देशन की तरफ इशारा करता है। असली अंग्रेज़ो से लदी फदी यह फिल्म एक बार अकेले में बैठकर देखिये। मुझे तो अब ऐसा लगता है की हमारे बच्चे उस स्वतंत्रता आंदोलन को समझ ही नहीं पाएंगे जोकि इन महान फिल्मों के जरिये हमने जिया है। पहले ये फिल्म बहुत अच्छी लगी फिर समझ आया की कितने आलसी राजाओं की वजह से हमपर हुकूमत कर गए ये अंग्रेज़।
ये कहानी कोई धार्मिक या जातिगत भेदभाव की नहीं है। बस जन्मजात संस्कारों की है। आदमी पैसे से नहीं अपनी परवरिश से जाना जाता है। उसके पीछे से जो मूल भाव चले आ रहे है, दिख ही जाते हैं। वैसे तो हर मानस पटल की अपनी छाप अलग होती है उसके स्वभाव पर निर्भर करती है।
अभी मेडिकल क़ालिज़ के डिपार्टमेंट के बाहर पहुँचा ही था की सामने से डाक्टर इक़बाल आ गये। बड़े ही ग़मगीन से गुमसुम, पास आकर फुसफुसाने लगे, बोले “सलाम वालेकुम डाकटर साब, सब ख़ैरियत?, सुना आपने कल रात नवीन साब पूरे हो लिए”!
“क्या? अरे बड़े दुख की बात है”! मैंने हैरानी और अफ़सोस में चौंक कर सिर हिलाया।
“अरे मैं कल शाम ही उनसे मिला था, मेरी गोल्फ कार्ट वो ले गये थे, तो उन्हें वापस लेने गया था, वो डाक्टर सतेंद्र जी भी थे वहीं पर, तो मैं बस हाथों हाथ वापस हो लिया था अपना सामान लेके, बस कोई एक घंटे बाद वो जन्नतनशीन हो लिये”। बहुत दुख के साथ डाक्टर इक़बाल ने पूरी बात बताई।
उनसे थोड़ी देर बात करके हमने तय किया की मेडिकल क़ालिज़ से फ़ारिग हो कर हम दोनों मातमपुर्सी के लिये उनके घर शाम को जाएँगे। डाक्टर इक़बाल तो खैर मौसेरे समधी भी लगते थे नवीन साहब के तो उनको तो वैसे भी जाना ही होगा, दिल में हिसाब लगाया। चौंके क्या आप? असल में डाक्टर इक़बाल की साली डाक्टर निलोफर और उनके पति डाक्टर फ़ाज़िल सऊदी अरब में डाक्टर हैं उनके बेटे ताबिश की शादी नवीन साब की बेटी सलोनी से हुई है। वो और ताबिश साथ ही लंदन की लुबोरो यूनिवर्सिटी से स्पोर्ट्स मैनेजमेंट की पढ़ाई करके ऑस्ट्रेलिया में जॉब के लिये गये थे। अब सलोनी की शादी में करोड़ों का दहेज माँगा जा रहा था क्योंकि वो सांवली है तो तंग आकर बेटी कि मर्ज़ी से उसकी शादी ताबिश से हो गई। अब जितने रिश्तेदारों तो कुछ कहना सुनना था वो सब अपनी मारवाड़ी मान मर्यादा भूल के इसीलिए चुप रहे क्योंकि सबको पता था की नवीन साहेब की ज़मींदारी से आने वाले बढ़िया दशहरी लंगड़े और चौंसा आमों की पेटियाँ आनी बंद हो जायेंगी या फिर जाड़ों में मिक्स वेजिटेबल अचारों की बरनियाँ भी ना मिलेंगी। फिर सोने की चेन, चाँदी के कटोरदान में भरे दो किलो काजू की कतली के साथ गये ब्याह की इन्फ़ॉर्मेशन कार्ड ने सबके मुँह पर ताले जड़ ही दिए थे। सबको पता था कि दो बार दहेज के चक्कर में सलोनी की सगाई टूटी।
अपनी पीडब्ल्यूडी की बादशाही चीफ़ इंजीनियरिंग के पद पर रहने में प्रदेश के ऊँचे नेताओं और अफ़सरों को भर भर के रिश्वत देके नवीन बाबू को असल में सबका मुँह बंद करना खूब अच्छे से आता था। ये गुण तो उनको अपने बाप दादाओं की ज़मींदारी के साथ जैसे विरासत में मिला था। बहुत दिलदार आदमी थे।और लोग उनकी इस आदत का फ़ायदा भी खूब उठाते थे। पर शायद उपरवाले ने उनको और उनके बच्चों को इसीलिए खूब खुश रखा भी है।
ख़ैर, जब तक ओपीडी में पहुँचा तब तक तीस चालीस पेशेंट लाइन में लगे दिख रहे थे। जल्दी से मास्क लगा के, स्टेथोस्कोप गले में लगा के, हाथ सैनिटाइज़ करके, नंबर से मरीजों को बुलवाना शुरू कर दिया, क़रीब १०-१२ पेशेंट देखने के बाद अपने नये असिस्टेंट मुदित को साथ लेकर जनरल वार्ड की तरफ़ चल दिया तो रास्ते में हंसते मुस्कुराते डाक्टर सतेंद्र अग्रवाल दिख गये। बोले”क्या हाल चाल हैं? आप तो सुबह ही काम में लग गये?” बड़ी हैरानी हुई मुझे। मैंने कहा “आपको पता नहीं चला नवीन बाबू का? ” अब मेरी बात सुनकर उनकी हंसी थोड़ी कम हुई पर बरकरार सी ही रही, बोले”हाँ कल रात ही पता चल गया था, मैं जब तक यहाँ आया था उनका सुनकर, तो पता चला कि उनके अंदर पल्स नहीं थी, रिवाइवल नहीं हुआ, मैसिव हार्ट अटैक था।” मुझे अब ये नई बात पता चली पर मैं चुपचाप सुनता रहा। सोचा कि पूछूँ की आप तो शाम को उनके साथ ही थे ना? पर वो ख़ुद ही बोले। “कल शाम को तो मैं उनके घर गया था क्योंकि मेरी भतीजी की शादी जिस लड़के से हो रही है वो उनके मुसल्ले दामाद के ही अंदर में ही सेम ब्रांड स्पोर्टिंग एजेंसी में काम करता है तो उसकी कोई रिक्वेस्ट थी। पर डाक्टर साब उनका तो शाम की चाय देख कर मेरी आँखें फट गईं थीं”। मेरा खून उबलने लगा, सोचा आगे चल देता हूँ पर मेरे कानों में डाक्टर सत्येंद्र की कर्कश काकभुशुण्डी जैसे बोल गूंजने लगे, वो निर्विवाद बोलने लगे, केसर इलाची अदरक दालचीनी की चाय भरी केतली, साथ में मछली के पकौड़े, आलू के चिप्स, पाइनएप्ल पेस्ट्री, मटन के शामी कबाब, आलू के फ़्राई और साब साथ चौंसा आम डकार रहे थे। इस पर मुदित बोल पड़ा “इसमें कौन सी बड़ी बात है सर? वो तो कभी कभी सात आठ तरीक़े के नाश्ते जैसे समोसे मठरी इमरती कचौड़ी बालुशाही ढोकला बर्फ़ी रसगुल्ले की प्लेटें सजवा के हमारे स्टाफ़ क्वाटर में भी भिजवा दिया करते थे, मैं वहीं उनके बंगले में रह कर पढ़ा हूँ। मेरा भाई उनकी स्टेट के ऑफिस में ही तो काम करता है। क़रीब सात स्टाफ़ क्वाटर हैं पीछे। उनका शेफ धोबी घर के नौकर भी वहीं रहते हैं। अब तो एसी भी लगवा दिये हैं सबके घरों में कोई तीन साल पहले। बड़े भले आदमी थे, मुदित का गला रूँध गया। उसके चेहरे पर शोक साफ़ नज़र आ रहा था।
डाक्टर सतेंद्र का मुँह जैसे कड़वा हो गया हो। वो बाय शाय करके आगे निकल लिए। हम दोनों चुपचाप जनरल वार्ड में भर्ती लोगों की जाँच में लग गये। चुप और व्यथित थे। और जानते थे कि नवीन बाबू कितने नेक इंसान थे। लौट के आते समय मुदित ने कहा मुझसे “डाक्टर साब! मैं आपको राय दूँ? आप बुरा तो नहीं मानेंगे?” मैंने कहा “कहो भाई, तुम तो बेटे समान हो!” मुदित ने बहुत सादगी और शालीनता से कहा “आप प्लीज़ ये सतेंद्र जी को अपने घर ना बुलाया कीजिए। इनकी बहुत हाय लगती है, ये बहुत किलसते हैं सबको देख कर। उस दिन मेरी नई बाईक को देख कर उल्टा सीधा बोल दिया, मुझे बाद में पता चला और आज तक मेरी बाईक ख़राब पड़ी है, एजेंसी वाले अगले हफ़्ते देंगे।और उस दिन आपकी पत्नी को देख कर बोले की वो कितना महँगा मेकअप करती हैं और ठसके से चलती हैं तो उनका पैर टूट गया शाम को ही”। मुझको मुदित की बातें सुनकर कोई हैरानी नहीं हुई। क्योंकि मेरी माता जी अक्सर ही कहती हैं कि दोस्ती बराबरी वालों में करनी चाहिए और उठना बैठना भी। और वो ये भी कहती हैं की ख़ाना पीना सबके सामने नहीं करते पता नहीं सामने वाले की क्या नियत हो?
पर चलो आजकल ये बातें मानता ही कौन है? मैं वापस आकर ओपीडी के पेशेंट देखने लगा। वैसे लगभग सबको ही पता है बल्कि सत्येंद्र जी ने गा रखा है की वो बहुत मेहनत से फाके करके डाक्टर बने हैं। और जब वो किसी के बच्चे को महँगे जूते कपड़े पहने देखते हैं तो पीछे से बहुत गालियाँ देते हैं की देखो साला अपनी औलाद को बिगाड़ रहा है। पर क्या करें लोग भी अब जानते हैं की वो अपने बचपन की फ़्रस्ट्रेशन निकाल रहे हैं।
तो आज मैंने तय कर लिया कि अब इनसे ज़्यादा पारिवारिक मेल जोल नहीं रखूँगा। क्या पता कल को मुझको देख कर ही कुछ अपशब्द बोल दें।अपना खाने का डिब्बा उठाकर अलमारी मे रख दिया। आज से इनके साथ ख़ाना ख़ाना भी बंद। मुदित को भी अच्छे से सब समझा दिया। वो सँभाल लेगा।
“ओम! सुनो! कोई अच्छा काम वाला हो तो बताना प्लीज़, नदीम तो बांग्लादेश जा रहा है एक साल के लिए।”। मैंने अपने नेपाली प्लंबर्वकों फ़ोन करके अनुरोध किया। बल्कि एक तरीक़े से गिड़गिड़ाया। “क्यों इतना लांबा टाईम को क्यों जा रहा है?” अब ओम ने इनक्वायरी शुरू कर दी। “शायद उसको घर बनवाना है”। लंबी साँस भर के मैंने ओम को बताया।
पति लन्दन में रहते थे प्रोजेक्ट के सिलसिले में और मैं यहाँ दुबई के घर में अकेली तीनों बच्चों से जूझती लार टपका के अपने भारत के रिश्तेदारों से उनकी काम वाली बाई के सुख सुनकर बहुत दुखी रहती थी ऊपर से नदीम ने कहा की वो बांग्लादेश से एक साल बाद लौट कर आएगा। आसमान हिल गया और धरती खिसक गई मेरे लिए। कई जगह फ़ोन घनघना दिये। कितनी मिन्नतें किट्टी पार्टी वाली सहेलियों से कर डाली।
कई बार दोहा की याद आती, वहाँ के हाउस बॉय अब्दुल की याद आती। मन ही मन पछतावा होता की बेकार दुबई शिफ्ट हुए। हर चीज़ इतनी महँगी ऊपर से आये दिन रिश्तेदार आते रहते। अब ये काम वाले नदीम के बांग्लादेश जाने का लफड़ा।
ख़ैर क़िस्मत थोड़ी से बुलंद निकली। ओम ने बोला की वो किसी थागी को लेकर आयेगा जो ऊपी का रहने वाला है। हो सकता है कि अफ़्रीका की कोई कंट्री हो। थागी तो अफ़्रीकन नाम होता है।
अब आये थागी अगले दिन ओम के साथ। अब ये भाई साब तो शाहजहांपुर यूपी वाले त्यागी निकले। हे राम! मन में सोचा बामन से चौका बर्तन धुलवाया जाएगा? पर त्यागी ने कहा की कौन देख रहा परदेस में? वो किसी होटल में काम करता था। पत्नी ब्यूटीशियन थी घर के पास किसी गाँव में। काम सही से करने लगा और कभी कभी व्रत त्योहार का भी बताने लगा। मन को भी सुकून हुआ की चलो सही वक्त पर सही बंदा मिल गया। नियत समय पर आकर सारा चौका बर्तन साफ़ करके रसोई साफ़ करता, पूरे घर में वेक्यूम करके डेटोल से पोछा लगाने के बाद अगरबत्ती भी जला देता। तो थोड़ा मन को भाने लगा।
उसको करते एक दो महीना हुआ ही था कि तीन चार बातें एक के बाद एक हुईं। मेरी किट्टी पार्टी होने वाली थी तो मैं बच्चों से मीठे के लिए ट्रैफ़ल या फ़्रूट क्रीम क्या बनाऊँ ये डिस्कस कर रही थी। त्यागी ने मुझे एक बहुत अच्छी रेसिपी बताई की क्यों ना मैं चाकलेट पेस्ट्री में फ़्रूट्स और कस्टर्ड बनाके डाल दूँ। तो बढ़िया हो जाएगा। मैंने कहा कि मीठे फ़्रूट्स छाँटना नहीं आता मुझको। तो उसने कहा की वो ला देगा। अगले दिन उसने मुझको अंगुली बड़े जीतने लंबे हरे अंगूर, तरबूज़, लाल रंग की बेहद मुलायम नाशपातियाँ, स्ट्रॉबेरी, चेरी, ब्लू बेरी से भरा एक २-३ किलो का डिब्बा ला दिया। मैंने जब चखे तो सारे फल शानदार तरीक़े के मीठे निकाले। मैंने एक अंदाज़े से उसको क़रीब सौ दिरहम पकड़ाये जो उसने पहले मना किया फिर ले लिए।
किट्टी पार्टी में ट्रैफ़ल को सबने बहुत पसंद किया और एक पाकिस्तानी सहेली ने थोड़ी आँख सिकोड़ के पूछा की मेरे यहाँ सफ़ाई वागेरह कौन करता है? तो वो बात दूसरी सहेलियों से हंसने में थोड़ी टल सी गई। पर मुझे कुछ अजीब सा तो लगा। याद रहा मुझे उनका आँखें सिकोड़ के पूछना।
अब एक सिलसिला सा चल निकला की हमको घर बैठे ही बेहद २-३-४ किलो शानदार फल सिर्फ़ सौ दिरहम में मिलने लगे। उधर एक दिन हमारे घर काम करते हुए त्यागी को उसके घर से फ़ोन आया तो उसने मुझसे पूछ के वीडियो काल रिसीव किया। उसकी पत्नी रजनी बिलकुल हीरोइन की तरह सज धज के काल कर रही थी। वो काफ़ी चिंतित थी कि कॉल क्यों नहीं लग रहा है। उसने मुझसे मेरा नंबर ले लिया। कभी इमरजेंसी हो तो। मुझे वो भली सी लगी पर मेरा अपना नंबर उसको देना त्यागी को थोड़ा सही नहीं लगा था शायद । पर वो चुप ही रहा।
कोई पाँच छह दिन बाद त्यागी जब काम करके चला गया तो उसकी पत्नी रजनी का फ़ोन आया कि त्यागी फ़ोन नहीं उठा रहा है। तो मैंने उसको कहा की उसकी कार में एसी काम नहीं कर रहा है तो वो वर्कशॉप में रिपेयर कराटे हुए घर जायेगा। तुम कोई दो घंटे बाद बात करना। उसने बड़े प्यार से कहा की मैं त्यागी को ना बताऊँ की उसने काल किया था। पीछे से किसी के चिल्लाने की आवाज़ आई तो उसने फ़ोन यह कहकर काट दिया की त्यागी की माँ यानी उसकी सास गालियाँ दे रही हैं। मुझे बड़ी हमदर्दी सी हुई कि पति इतनी दूर मेहनत कर रहा है बिचारी सास की सेवा कर रही है।
उसके बाद रजनी का फ़ोन आने लगा कभी कभी। उसके मुताबिक़ वो त्यागी की माँ बहनों के बीच पीस रही है। त्यागी सारा पैसा अपनी बहनों की शादी के लिए इकट्ठा कर रहा है। उसको कोई पैसा नहीं भेजता है। तो ये सुनकर मुझे बहुत ही ज़्यादा बुरा लगा पर तरस भी आया। फिर एक बार उसने मुझे रिक्वेस्ट की इस बात के लिए की मैं त्यागी को समझाऊँ की सारा पैसा पत्नी के नाम से भेज दिया करो। ताकि कोई उसे तंग ना कर पाये। मुझको बात समझ आ गई। बिचारी कब तक दबेगी?
त्यागी हमारे घर हफ़्ते में तीन बार आता था। क़रीब तीन चार घंटों में सारा घर साफ़ करके कपड़े धोके सूखा के जाता था। इस तरह से वो कोई छह घरों में मेहनत करता था। हर घर से उसको आठ सौ दिरहम यानी की क़रीब सोलह हज़ार रुपए मिलते थे। तो छियानवे हज़ार तो मिल जाते थे और नौकरी के पचपन सौ यानी की एक लाख दस हज़ार थे ही। तो क़रीब दो सवा दो लाख भारतीय रुपये कम तो नहीं होते।
पति देव को बताया तो उन्होंने उल्टा मुझको डाँटा की क्यों उसकी बीवी से बतियाती हो। (हसबैंड सही होते हैं ये बीवियों ही बिना बात इमोशनल हो जाती हैं)। हमारे घर का एक टेप टपक रहा था तो मैंने ओम प्लंबर को बुलाया। उसने कहा कि वो दो तीन घंटे में आयेगा। ख़ैर इनसे डाँट खाने के बाद मूड ऑफ था तो चुप करके टीवी देखने बैठ गई। ओम कोई एक घंटे बाद ही आ गया। उसके साथ उसका छोटा भाई कमल भी आया। दोनों नल को खोलके चेक करने लगे। ओम ने अपने भाई को नया टेप लाने को कहा।
मैं ओम से बात करने लगी। उसको थोड़े से फल काट के दिये। उसने अजीब तरीक़े से मुझको देखा और पूछा। मेम शाब ये फ़्रूट वो थागी लाया है? मैंने पानी पीते हुए हाँ में सिर हिलाया। वो बोला “फ्री में लाया की पैशा (पैसा)दिया आप”? तो मैंने बताया की वो ले नहीं रहा था तो मैंने ज़बरदस्ती दिये उसको। ओम ने सिर नीचा करके निराशा से हिलाया। मैंने पूछा की क्या हुआ? तो वो बोला नहीं कुछ। फिर मैंने दिल में कुछ याद करके कहा “वो एक पाकिस्तानी सहेली भी पूछ रही थी की आपके यहाँ कौन काम करता है? ओम ने मुझे आँखें सिकोड़ के पूछा “किधर रहता है वो मैडम”? तो मैंने बताया की दिएरा सीटी सेंटर के सामने जो अल ख़लीज़ बिल्डिंग है उसमे सत्रहवीं मंज़िल पर रहती हैं। तो ओम बोला “मैं जानता हूँ मेमशाब, ये थागी उधर ही काम करता था पहले”। अब मैं चुप और दिल में धक धक शुरू हो गई। ओम ने बताया की थागी (सौरी त्यागी) किसी होटल में शेफ़ का काम करता है और वहाँ से फल निकाल के अपने काम वाले घरों में बेचता है। इस चक्कर में ये दो तीन होटलों में जॉब चेंज कर चुका है या निकाला भी जा चुका है। ओह तो हम चोरी के फल खा रहे हैं? मैंने कहा। तो ओम एक फीकी हंसी हंस दिया। बोला “मैडम हम नेपाली लोग चोरी का बिलकुल खाते नहीं है, पर कोई कोई हमारे यहाँ भी चोर निकल आता है, आप तो ख़ैर इसको पैसे देती हैं तो चोरी के कहाँ से हुए?”। अभी बात हो ही रही थी कि ओम का भाई कमल नया नल लेके आ गया। दोनों जन नल ठीक करने में जुट गये और क़रीब दस पंद्रह मिनट में काम निपटा कर वापस जाने लगे। मैंने ओम को कहा कि मैंने तो अब त्यागी से काम नहीं करवा पाऊँगी तुम किसी और को भेजना। इसकी बीवी का ख़ायक नहीं होता तो मैं हाथ की हाथ इसको निकाल देती।अब ओम और कमल दोनों ज़ोर से हंस पड़े। जैसे मैंने कोई जोक सुनाया हो। कमल बोला “मैडम थागी की माँ तो अपाहिज गूँगी बहरी है। एक बहन वहीं किसी सरकारी स्कूल में टीचर है उसका पति बैंक में किलर्क (क्लर्क) का काम करता है। उसकी बीवी की चार बहने हैं वो सब काम वालों के यहाँ फ़ोन करके थागी को जोर दिलवाती है कि मुझको पैसा भेजा कर। आप उसके चक्कर में मत आना। थागी को फलों की चोरी भी उसी ने सिखाई है। वो सारा पैसा अपने मायके में उड़ा देती है। कहकर दोनों जन दरवाज़े से बाहर चले गये।
मैंने सोच लिया कि मैं अब त्यागी से फल कभी नहीं ख़रीदूँगी। उसकी बीवी का नम्बर ब्लॉक भी कर दिया। हमारे पूर्वज सही कहते थे की कामवालों से ज़्यादा याराना दोस्ताना सही नहीं होता। अब से थागी सौरी त्यागी से फ़ालतू बातें बिलकुल बंद। काम कर और जा वापस!
लैंड क्रूज़र की सवारी – स्वरचित – प्राची वार्षण्ये संडे की सुबह सैर के लिए जाने की सोच कर प्रभास उठा ही था कि उसकी पत्नी पूजा ने उसको सब्ज़ी लाने को बोल दिया। वो गाड़ी की चाभी और बटुआ लेके सब्ज़ी मार्केट चला गया था। पूजा का भी कहना सही था कि सब्ज़ी टाईम से आ जाएगी तो काम वाली से छँटवा के धुलवा के फिर कटवा के फ्रिज में हफ़्ते भर के लिये सहेज दी जायेंगी। प्रभास ने वापस आते समय अपनी सोसाईटी के गेट पर एक बिलकुल नई चमचमाती सफ़ेद लैंड क्रूज़र गाड़ी को देखा। उसमे मोटा सा लोगो देखकर वो पहचाना की ये तो उसके बॉस की ही नई गाड़ी है।उसकी काम वाली बाई नुसरत उसमे से उतर रही थी। अपने जूड़े में मोटा सा गजरा लगाये उसने बहुत ज़ोर से हंसकर ड्राइवर को टाटा किया और सोसाइटी के अंदर की तरफ़ चल दी। प्रभास को बहुत अजीब लगा। पर वो घर आकर कुछ बोला नहीं। कुछ देर के बाद उसने अपनी पत्नी पूजा को अलमारी में कुछ रखते देखा। जब वह वापस रसोई में चली गई तो उसने अलमारी में चेक किया तो नुसरत का लाल रंग का बटुआ था जिसमें पाँच हज़ार के नोटों की गड्डी थी। उसका मन विचलित हो गया। वो मन ही मन उबलने लगा।पर ब्रेकफास्ट के लिए देर हो रही थी तो वह नहाकर तैयार होने के लिए बाथरूम में चला गया। उसने सोचा कि वह शाम को पूजा को सब बता देगा। अभी तो नाश्ता करके वो सब लोग शॉपिंग और मूवी देखने के लिए जाने वाले थे। शाम को जब प्रभास सपरिवार घर वापस आ रहा था तो उसने सामने के टावर में रहने वाली अनु अरोड़ा को उसी नई सफ़ेद लैंडक्रूज़र में बैठ के गेट से बाहर जाते हुए देखा। अब प्रभास को लगा की उसको नुसरत वाली बात अनु अरोड़ा जी को बता देनी पड़ेगी। वो एक बहुत बड़े कंसलटेंट इंजीनियर सुरेश अरोड़ा जी की बीवी थीं। वो प्रभास की कंपनी का भी काम करते थे तो उनसेकाफ़ी जान पहचान थी।वो अभी कुछ महीने पहले ही इस सोसाइटी में शिफ्ट हुए थे। उसके बाद ही उन्होंने प्रभास की कंपनी में अपनी सेवाएँ देनी शुरू की थीं। प्रभास के बॉस मिश्रा जी उनको बहुत मानते थे। अब उसे बहुत बुरा लग रहा था कि इतने बड़े बड़े लोगों के बीच उसकी काम वाली कितना गंदा लफड़ा कर रही थी। कैसे कैसे कर के उसका शनिवार गुजरा। नुसरत अपने नियम से काम करने आई। वो अपना ग़ुस्सा पीके चुपचाप बैठा रहा। दिल ही दिल में वो जो ज्वालामुखी ज़ब्त किए बैठा था उसका घर में किसी को भी कुछ पता नहीं था। सोमवार के दिन वो जब ऑफिस पहुँचा तो सबसे पहली मीटिंग शुरू हो चुकी थी। अरोड़ा जी भी थे वहाँ और मिश्रा जी खूब हँस हँस के बातें कर रहे थे। उसको लगा कि जब मिश्रा जी अकेले होंगे तो वो उनको बता देगा की उनका ड्राइवर और उसकी काम वाली का जरा देख लें। वो उसकी सोसाइटी में उसकी कामवाली को ड्राप करके गया था। सभी लोग उसके बॉस मिश्रा जी को उनकी नई लैंड क्रूज़र के लिए बधाई दे रहे थे। अपने रूम में आके उसने अपना सामान व्यवस्थित किया। चाय के लिए पेंट्री में बोला। मेल चेक करते हुए उसने मोबाईल को चार्जिंग में लगाया।तभी मिश्रा जी वहीं आ गये। उन्होंने आकर कमरे का दरवाजा बंद कर लिया तो प्रभास को बहुत अजीब लगा। उन्होंने प्रभास से कहा “प्रभास वो जो कारघर वाले प्रोजेक्ट का कंसलटेंट है ना, उसको ही अपनी कंपनी में ले लेते हैं। इस अरोड़ा को निकाल के बाहर करो। प्रभास चौंक के कुर्सी पर बैठे बैठे ही थोड़ा पीछे खिसक गया।”क्यों सर”? तो मिश्रा जी उसको आँख मार कर बोले “इनकी नियत ख़राब हो रही है मेरी नई वाली गाड़ी देखकर”। प्रभास से रहा नहीं गया। वो बोला “परंतु सर कल तो इनकी बीवी सैर कर रहीं थीं आपकी गाड़ी में”। मिश्रा जी आँख मारकर ज़ोर से हँसे “अरे वो सैर करते हुए ही तो मुझको सैर कराने आई थी,सारी रात सोने नहीं दिया मैंने उसको। अपनी वाईफ़ को मालदीव भेजा है उसकी सहेलियों के साथ, अब इसी से काम चला रहा हूँ। तुम्हारी सोसायटी में इसीलिये तो रखा है ताकि जब मन चाहे इसको बुला लूँ”। “पर ये खर्च बहुत करती है, एक बार कार्ड दे दो तो २-३ लाख रुपये माल में उड़ा आती है”। मेरे दोस्त है ना गुप्ता उसको पता नहीं कितना ऊँचा रेट बोली ये। प्रभास के पैरों तले से ज़मीन निकल गई हो जैसे। उसके कानों में घंटी बजने लगी। कहाँ वो अपनी कामवाली की बात बताने वाला था। यहाँ तो जिनको इज़्ज़तदार समझ रहा था उनकी पोल खुल रही थी। मिश्रा जी बोल रहे थे “यार ये कंसलटेंट काम पाने के लिए ख़ुद ही ऑफ़र करते हैं तो हर छह महीने में हम भी आदमी बदल कर औरत से दिल बहला लेते हैं”। प्रभास बोला “सर आपका ड्राइवर भी नया है ना?”। मिश्रा जी बोले। “लो तुमको पता नहीं है क्या? डंब हो! तुम्हारी काम वाली का ही तो छोटा भाई है।परसों तरसों उसको ले गया था हाजी अली दरगाह पर सुबह, मुझे लगा कि तुम थैंक यू बोलोगे, तुम्हारी वाइफ़ ने ही तो ऑफिस पोर्टल पर ड्राइवर की जॉब देख कर यहाँ उसकी गारंटी दी थी, एडवांस भी दिया मैंने पाँच हज़ार, वो दुबई में लैंड क्रूज़र ही चला करके आया है तो सही से चला रहा है गाड़ी।” प्रभास बोला”सर मैं बिजी रहा तो कुछ बात नहीं हो पाई वाईफ़ से”। मिश्रा जी उठ गये कुर्सी से, बोले “कारघर वाले को बुलाओ ऑफिस, बता रहा था कि वाईफ़ कमाल है मेरी”। प्रभास फीकी सी हँसी हंस के रह गया। मिश्रा जी के बारे में उड़ते उड़ते सुना था उसने। कई बार ऑफिस की कुछ ख़ास महिलाओं को बीस बीस हज़ार वाले गिफ्ट देते तक देखा था उसने। पर आज उसको महसूस हो रहा था की कई बार जो दिखता है वो होता नहीं है। अपनी ओछी मानसिकता पर भी उसको बहुत गिलटे महसूस हुआ। उठाकर अपनी अलमारी से कुछ गिफ्टेड पेन ड्राइव अपने बैग में रख लीं। कल नुसरत अपनी बेटी के लिए माँग रही थी की स्कूल प्रोजेक्ट सेव करके स्कूल ले जाना है।
In a gleam of pure enchantment, it shines, A symbol of love, a treasure divine, A golden bangle, bestowed with grace, A cherished gift that time cannot erase. On my wedding day, with a mother’s pride, She gently placed it on my wrist, tied, A legacy passed from her loving hand, A bond between us, forever grand. Each glimmering curve whispers a tale, Of strength, of tradition that shall not fail, An heirloom of memories, old and new, That binds our hearts, forever true. A delicate embrace, twinkling in the light, This golden bangle, so precious, so bright, It carries the weight of a mother’s love, Guiding my steps, as I soar and rise above. With every gentle clink on my arm, I feel her presence, a soothing calm, A reminder of the love that she imparts, Etched in gold, forever in our hearts. Through joy and laughter, and tears that fall, This golden bangle stands unyielding through all, A symbol of heritage, it holds the key, To a legacy of love, to cherish and decree. So, I wear it proudly, on this journey of mine, A cherished treasure, a precious sign, Of a mother’s love, an unbreakable bond, With this golden bangle, forever fond.
In the heart of the kitchen’s bustling domain, Where flavors awaken and stories remain, Lies a treasure trove, a fragrant delight, A symphony of spices, igniting our appetite. Cumin, the warrior of earthy allure, Sprinkles its warmth, revealing a secret cure, With every pinch, it dances on the tongue, Adding depth and warmth to where it’s hung. Turmeric, radiant with its golden hue, A burst of sunshine in each dish it imbues, Its healing powers, a magical caress, Brightening flavors, a true culinary finesse. Ginger, the wondrous root, fiery and bold, Zests up the taste buds, as stories unfold, A spicy companion, both vibrant and sweet, Infusing dishes with a zing that’s hard to beat. Cardamom, the queen of fragrance untold, Unleashing its perfume, delicate and bold, A sprinkle of pods, a moment of bliss, Enveloping senses, with a lingering kiss. Cloves, like tiny blossoms, deep and rich, Unfurling their essence, a potent witch, With their heady aroma, they conquer the air, Adding warmth and allure, a dance beyond compare. Cinnamon, the spice of comfort and ease, Wraps dishes in its cozy, aromatic breeze, A touch of nostalgia, a soulful embrace, Transforming ordinary into a sweet, spicy grace. Coriander, humble, yet full of delight, Unleashing its citrusy zest, ever so bright, A sprinkle of seeds, a taste that astounds, Bringing harmony to flavors, like a magical sound. Oh, spices, you enchanting friends so grand, In the kitchen, you weave a delicious command, With every dash, a story comes alive, Awakening our senses, making us thrive. So, celebrate these spices, divine and rare, For in the kitchen, they whisper tales to share, Let them dance in harmony, day and night, Igniting our palates, with flavors that ignite.
In a world of shadows and sorrow, A young widow’s heart longed for tomorrow. She yearned to know, to understand, Where did her husband’s essence land? With determination, she set her sight, To search for her love in the darkest night. Through barren fields, she ventured on, A soul’s quest, where hope had gone. Whispering winds carried her plea, To reach beyond the veil, set her spirit free. With every step, her courage grew, Her love, her anchor, she knew she must pursue. In ancient mountains, she climbed so high, Seeking solace beneath a starry sky. The moonlight guided her path each night, As she journeyed on with unwavering might. Her heart, a torch that would never fade, Through realms unknown, she bravely made. Through ethereal forests, she softly tread, Dreams haunted her, within her head. Calling out his name, with tender plea, She hoped in her dreams, his soul she’d see. Listening to echoes of love’s embrace, Her footsteps echoed through time and space. In realms unseen, she discovered a door, Where souls wander forevermore. With trembling hands and a heart ablaze, She stepped into the depths of a mystic maze. Visions intertwined, like whispers of fate, Guiding her closer to her longed-for soulmate. Through realms of dreams and ethereal streams, A montage of memories, it truly seems, Her path unravelled, revealing the way, To reunite with the soul that’s astray. Embracing the pain, as shadows dispersed, Their souls entwined—love’s eternal verse. In that hallowed moment, they reached across, Bound together, despite life’s loss. She found her love, her partner, her guide, As they danced together, side by side. For love transcends the realms of decay, Their spirits entwined, forever to stay. And so, the young widow’s journey was done, Her faith, her love, forever won. She found solace in the embrace of the night, Reuniting with her love, in tender light. As stars wove their tales in the canvas above, Her search bore witness—a testament to love.
The boy is burning with fever, His skin is flushed and hot to the touch. His step mother sits by his bedside, Worried and helpless. She watches as he tosses and turns, His face contorted in pain. She knows that he is suffering, And she wishes she could take it all away. She tries to cool him down with cool cloths, But it does little to help. She gives him medicine, But it doesn’t seem to be working. She is starting to panic, She doesn’t know what to do. Society might curse him. She feels like she is failing him, And she is afraid that he is going to die. But then, slowly, the fever begins to break. The boy starts to sweat, And his skin begins to cool down. His step mother sighs with relief, She knows that he is going to be okay. She holds him close, And she whispers, “I’m so glad you’re better.”
In a world of youthful wonder, where dreams take flight, Two siblings sat together, bathed in golden sunlight. A brother and sister, side by side they played, In their first red toy car, their joy never swayed. With laughter as their fuel, they embarked on their way, Their little hearts racing, eager for the day. Imagination their compass, the world their grand stage, They weaved tales of adventure, page by cherished page. The brother, a captain brave, gripping the wheel so tight, His sister, a co-pilot, her smile shining bright. Through fields of make-believe, they raced without a care, Exploring boundless landscapes, a bond beyond compare. Their little red car, a vessel of dreams, Carried them to distant lands, or so it seems. They sailed through rolling hills and mountains tall, Chasing rainbows and stars, they never feared to fall. Together, they conquered the roaring ocean’s spray, With the wind in their hair, they’d find their own way. Through imaginary cities, bustling and alive, They painted a world where their spirits could thrive. The brother, a knight, fought dragons fierce and tall, His sister, a princess, standing proud, never to fall. In their crimson chariot, they soared through the sky, Bringing magic to their world, as clouds danced by. As twilight embraced the horizon, they knew time would fly, But memories in their hearts would forever amplify. For within that red toy car, their innocence bloomed, A bond between siblings, forever entwined and groomed. Though years may pass, and the red toy car grown old, The echoes of their laughter, a treasure to behold. For in the realm of childhood, where dreams are set free, Two siblings sat and played, forever cherishing glee. So, let their story be a reminder, dear and true, Of the love between siblings, that forever will renew. In that first red toy car, their spirits will remain, A testament to the magic of youth, time cannot restrain.