Ek aisi machine ho ki…..

 

दीप्ति की चुप आँखें, गर्दन में पड़े भारी भरकम हीरे के मंगलसूत्र से कहीं ज्यादा दर्द भरी लगती हैं. छोटे शहरों में जाने कितने हजार घरों में ऐसी अनजान दीप्तियाँ मिल जाएँगी आपको जिनको खुले आसमान में देखने का सुख बस कपडे धोके सुखाते हुए ही मिलता है. 

अरबपति बर्तनो के व्यापारी की छोटी बेटी मेरी बचपन की सखी थी वो जो दो गली पार अथाह संपत्ति के मालिक लाला मुन्नालाल अग्रवाल के अंगूठाछाप पोते से ब्याह दी गयी थी. उसकी शादी के दिन उसके पान चबाते लाल आँखों वाले कद्दू से शराबी पति को देख फर्स्ट डिवीज़न बीएससी पास हरसिंगार की कली जैसी नाजुक सहेली की किस्मत पे बहुत रोना आया था. पर वो बेचारी भारी भरकम पुश्तैनी जेवरों से कभी अपनी नाजुक कलाईआं तो कभी गर्दन सहलाती शर्म से मरी जा रही थी. 

मेरा बेटा और उसका बेटा साथ के ही हैं. पर रात दिन पिता के ऑफिस में नोट गिनते उसके बेटे को यही पता है की प्राची मौसी विदेश रहती है जहाँ हवाई जहाज़ से जाते हैं और बतम(बटन) दबाओ तो सब काम खुद हो जाते हैं. बड़े स्कूल में पड़के भी वो मोबाइल नहीं ऑपरेट करता क्यूंकि बाबा ने स्मार्ट फ़ोन खरीदने को मन किआ है. 



एक बार दुबई के लाउंज में बैठी सुस्ता रही थी क्यूंकि कन्नेक्टिंग फ्लाइट तीन घंटे बाद थी की मेरे सामने बैठे लुइस विट्ठन ब्रांड के स्वयंभू ब्रांड एम्बैसडर बिदेशी ने किसी को देखके नाकभौं सिकोड़ी. मेरे घर के सामने सफाई करते रहने वाले लड़के ने जोर से नमस्ते बोलै था मुझको. उसको इतने हाई फाई लॉउन्ज में देख मैं पूछ ही बैठी थोड़ी निर्लज़्ज़ हो की यहाँ कैसे? तो उसने बड़ा सीना चौड़ा करके बताया की सुदूर बिहार प्रांत के जिस गांव का वो है उसके पडोसी का बेटा भी क़तर में इंजीनीर है, उसने ही बैंक का कार्ड बनवा लाऊंज का कार्ड बनवा दिया है. 



वाह री किस्मत!!वो बीएससी फर्स्ट डिवीज़न सखी गहनों में दबी अपनी जिंदगी के मायने ऐसी विकट सर्पाकार अंधियारी गलिओं में ढूंढ रही है जहाँ भीषण गर्मिओं में भी रिक्शा में बैठ के जाओ तो खुली नालिओं की बजबजाती ठंडी बदबू से कान दर्द करते हैं. और ये यहाँ सड़क सफाई कर्मचारी बढ़िया लॉउन्ज में परिचारिका को गर्म सूप देने का हुक्म फरमा रहा है. 



पिछली बार दरबाजे तक छोड़ने आयी सखी से गले मिलके पूछ बैठी थी की क्या लाऊँ अगली बार? तो वो हंस के रो दी थी “कोई ऐसी मशीन ला देना जिससे दिल का सूनापन कम हो जाता हो”… सही तो बोली थी वो.. मेरे ले जाये परफ्यूम चॉकलेट्स आदि सब तो सास उठाके उसकी ननद को सौंप देती थी. 

अब के देखूंगी इंटरनेट पे कोई मशीन बनी क्या जिससे दिल का सूनापन चला जाता हो? कोई छत पर घर भर के कपडे धोके सुखाने जाए तो पल भर को एक हवाई जहाज़ दिख जाये उसको. वो रात को सोये तो कहीं से समंदर उसके पैर भिगो जाए! उसकी आँखों से कोई आंसू बहे तो कुछ सितारे उसकी हथेलिओं में जगमगा उठे. वो उदास हो तकिये पर सर टिकाये तो एम्स्टर्डम के टूलिप्स के रंग खिलखिला उठे, कभी तो बनेगी ऐसी मशीन! बस बटन दबाके खुशीआं आ जाएँ उसके पास! 

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