lagan me magan (Hindi story) 



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~ लगन में मगन ~

शायद किसी गाँव के काशतकार का बेटा था वो। चित्रा के पापा बड़े से पीतल के लोटों को घिसने के कारख़ाने के मालिक थे। गाँव में काफ़ी ज़मीन भी थी। वहीं से उस छोटे से काले भूंजग पतले लड़के को घर के काम काज को ले आए थे। शुरू में तो वो बड़ा सहमा सहमा सा रहता था। पर जल्द ही घर भर की नब्ज़ भाँप के चतुर सियार सा हो गया था।

सुबह चार बजे उठते ही सारे घर में झाड़ू पोंछा लगा छत पे लगे पच्चासियों गमलो के पोधों में पानी देता। सारे घर के नाश्ते का इंतज़ाम करता साथ ही चित्रा के पापा के ताज़े धुले प्रेस किए कपड़े गुस्लखाने में टाँग उनका पूजाघर धो पोंछ के पूजा की थाली सज़ा देता। 

चित्रा की भाभियाँ हों या मम्मी या फिर बड़ी बहने सब की सब उसको एक के बाद एक काम बताते और वो मूह में पान दबाए ग़ज़ब की फुर्ती से सब निबटारा करता रहता। घर में धोबीं आता और बर्तन घिसने वाली भी। पर उसको बस अपनी धुन रहती काम समय से निबटाने की। कोई दो साल में उसने पूरे घर को मुट्ठी में नन्हें चूहे की तरह दबा लिया। 
घर के सारे बच्चों ने जल्द ही पापा से झगड़ा के करण को छत पे अलग रसोई और कमरा बाथरूम बनवा दिया। उसका भी कारण था। सर्दियों में हल्की सी नमक के पानी में उबाल वो पाँच दस किलो फूलगोभी सूखा लेता था। फिर गरमियों में ख़ूब सारे सरसों के तेल में लहसुन टमाटर प्याज़ के पतले मसाले को भून के उसने में वो सूखी फूलगोभी डाल के ऐसी सब्ज़ी बनाता था कि चार मोहल्ले आगे आने के बाद भी अंगुलियों से ख़ुशबू ना जाए।
आदमियों में मैंने इतना बढ़िया खाने बनाने वाला बंदा मैंने शायद ही कोई देखा होगा।चित्रा की सबसे बड़ी बुआ को मरती हालत में उसके फूफा छोड़ गए थे और कुल जमा पंद्रह दिन में जब वापस लेने आए तो आँखें मिलते रह गए। क्यूँकि बुआ तो फ़ुट्बॉल बनी चारपायी पे डकारें मार रही थी। करण ने शुद्ध देसी घी और दूध से गुँथे आटे की रोटियाँ बना बना के कटोरा भर देसी घी में चम्मचे  दाल घोट के हर दोपहर जो खिलायी थी। कभी सेब का जूस निकाल कॉफ़ी घोल पिलाता तो कभी बादाम और ताज़ा नारियल दूध में औता के पिलाता। 
घर के सारे बच्चे माँ के मायक़े जाते ही सारे दोस्तों सहेलियों को न्योता देते। फिर जो पंगत जमती। करण बाज़ार पाँच किलो मटन पाँच किलो मुर्ग़ा कटवा लाता। मुर्ग़ा तो दही हल्दी लाल मिर्च लहसुन में डुबो के फ़्रिज में रखता। वहीं मटन की रानो में चीरे लगा लगा के काली मिर्च बादाम और लहसुन का पेस्ट भरता। दो दिन के बाद शाम को बड़ी सी अंगीठ सुलगायी जाती। घर में पल रही दो भेंसो के दूध से बना देसी घी लाया जाता और उसमें डुबो डुबो मटन और चिकन के पीस दहकते लाल अंगारों पे भूने जाते। सारे बच्चे यार दोस्त सहेलियाँ ख़ुशी से हँसते हँसते दोहरे हो जाते। करन कंधे पे अँगोछा डाले बड़े गर्व से निम्बू प्याज़ डाल सबको बराबर बाँटा करता। आज जो ये पाँच सितारा होटेल रेशमी कबाब कहके परोसते हैं करण देखता तो ज़ोर से हंस पड़ता। उसके चेहरे पे छनक और चमक होती वो शायद ही कभी देखी। बड़ा सकूँ रहता चेहरे पे। कई सालों बाद अपनी विदेशी एंबेसी की दौरान एक केबिनेत्त मंत्री के घर लज़ीज़ कबाब बनाने वाले को भी उतने ही शौक़ से कबाब सेंकते देखा था। 
कुछ लोगों का जी जिस काम में सबसे ज़्यादा लगता है वो उसमें बड़े मगन होके काम करते हैं। उन्हें कुछ ख़बर नहीं होती। बस ये पता होता है की काम ऐसे बढ़िया होता है। वो अपनी लगन में मगन रहते हैं। 

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