Memories of Lodhi Road, Delhi(Hindi post).




अबके हम इंडिया जाएंगे तो कहाँ कहाँ जायँगे मम्मी? हमेशा फ्लाइट टिकट्स बुक होते ही बच्चे पूछते हैं. सब कुछ तय हो जाता है. पर जहाँ मैं जाना चाहती हूँ बस वही नहीं बोल पाती.

दिल्ली की लोधी रोड से बहुत कुछ जुड़ा है मेरी जिंदगी में. वहां जाना चाहती हूँ पिछले आठ सालों से. वहीँ इंडिया हेबिटाट सेंटर दिखाना चाहती हूँ अपने बच्चों को. जहाँ पहले अपने देश के राजदूत बॉस के न्योते लिए दिग्गज कलाकारों के कार्यक्रम जुटती फिरती थी, कभी कोई कॉन्फ्रेंस या कोई मीटिंग के लिए बॉस के पीछे पीछे फाइलें और फोल्डर थामे चलती थी. ऐसी जगहों के फिनायल और हवाओं की महक नहीं बदलती कभी भी. बरखा दत्त, शुभा मुद्गिल, शबाना आज़मी, ओम पुरी, नसीरुद्दीन शाह सामने से निकल जाते थे. हाथ में एक क्लिक में फोटो खींचने वाले मोबाइल की कमी बड़ी खलती थी. 


लोधी गार्डन के मशहूर बेशर्म जोड़े और उनकी पर्स या जेबों से सरेआम पैसे लूटने निपट रिश्वतखोर पुलिसवाले या जरा जरा सी चीज़ों के अनाप शनाप पैसे कूटने वाला वो छोटा सा रेस्टोरेंट. वो अजीब से माहौल की जबरदस्ती वहां बैठे रहने की मजबूरी की यादें. 


लोधी रोड पर बने साईं बाबाजी के मंदिर की यादें. वहां के गुलाब के फूलों की खुशबु से तरबतर हवा की यादें. वो हीरों में दमकती पंजाबी महिलाओं का रुआब से सर ढके चमकते चेहरे, वो जगजीत सिंह का मधुर भजन “तू 

अन्तर्यामी, जग का स्वामी, तू ही तो है राधा का श्याम”..पहली बार वहीँ सुना था. साईं मंदिर के बाजू में बना बो दक्षिण भारतीय प्रकांड मंदिर. अद्भुत काष्ठ कला से मडा हुआ. वहां का वो नमकीन चावल का प्रसाद. शायद आज भी कहीं कुछ नहीं बदला होगा. 


फिर लोदी रोड पर बना वो विद्युत् शवदाह गृह जहाँ मेरे पति का शवदाह हुआ था. मै जोर जोर से रोती हुयी, मेरा भाई और जेठ किर्या के सारे काम करते हुए, मेरे पापा मेरा भारी सा पर्स पकडे हुए,वो अक्टूबर की गर्म नरम धूप और बेहद प्रोफेशनल तरीके से सारा काम निपटाते हुए कर्मचारी. कई सालों बाद उसी जगह चटख साड़ी मे लिपटी हुयी एक अर्थी देखि थी टीवी पर. राष्ट्रपति प्रणव मुख़र्जी की पत्नी का शवदाह दिखा रहे थे. सोचा बहुत की चली जाऊँ एक बार पर अब तक जाने कितने लोग की रख फ़ैल चुकी होगी उस धरा पर यही सोच के मन मे इच्छा समेट लेती हूँ. 


मन तो बहुत होता है लोधी रोड जाने का . पर अब जा ही नहीं पाऊँगी उधर की तरफ. 

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