Unthoughtful parents of overaged unmarried girls.

करीब दस साल पहले वो पच्चीस छब्बीस साल की युवा लड़की, मेरी पड़ोसन की बिटिया, बंगलौर नौकरी करने गयी थी. सॉफ्टवेयर इंजीनियर, आकर्षक और गेंहुआ रंग. हंसती मुस्कुराती हुयी,जिंदगी से भरपूर.

मुझे लगा की मेरे तीसरे नंबर के मामाजी का परिवार ऐसी ही लड़की ढूँढ रहा है अपने बड़े बेटे के लिए. हम मारवाड़ी बनिए हैं और मेरी पड़ोसन ब्राह्मण. मुझे लगा की अगर दहेज़ का मामला न हो तो आसानी से बात बन सकती है.

परन्तु लड़की की माँ ने बहुत बेरुखी से प्रस्ताव ठुकरा दिया की बहुत रिश्ते आ रहे हैं पर उनको तो दोहा क़तर में नौकरी करने वाला लड़का चाहिए जो घर जमाई रह ले साथ ही में. बात सही भी लगी क्यूंकि उनको चार बेटियां ही हैं.

पर कल शाम उस काली डंक मुरझाई हुयी लड़की से बाहर यूँ ही मुलाकात हो गयी. सुबह से शाम नौकरी करके आती है, शाम को चार बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती है. माँ अब भी वोही ऐंठ पाले बैठीं हैं की अपनी जात का हो, गोत्र ऐसा हो, कोई मांग नहीं हो, लड़का सुबह शाम आके सास ससुर की सेवा करे.

मुझे देख के थोड़ा रुकी, हाल चाल पूछा गया, फिर फीकी सी हंसी हंस के बोली “आंटीजी आप मेरी किसी भी तरह शादी करा दीजिये”.

मैं उसका चेहरा देखती रह गयी. क्यों ये माएं अपनी बेटिओं की उम्र निकाल देती हैं की शादी कोई जरुरी नहीं होती. हम समझौता नहीं करेंगे.क्यों सरकार ऐसे माता पिता के लिए गाइडेंस शिविर नहीं लगाती की अनब्याही लड़किओं को अकेलेपन के कितने गंभीर अवसाद होने लगते हैं? हमारे भारतीयों में आज भी बहुत सशक्त रूप में अनब्याही लड़किओं को सन्निध्ये या सम्बल नहीं दिया जाता. यह बहुत चिंता का विषय है. और जो माता पिता ऊँची नाक रख के अच्छे अच्छे लड़के ठुकरा देते हैं उनको भी इस बारे में चिंता करनी चाहिए.

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