We are so shameless lot many times! 



मेरे पति बताते थे की उनके अलीगढ वाले घर के बाहर एक इलाहाबादी अमरुद का छोटा सा पेड़ लगाया था उनके पिता ने कभी. बेहद मीठे, रसीले और चटख लाल रंग के अमरुद लगते थे. इलाहाबाद के अमरुद लाल रंग के भी होते हैं. गिनती के कुल चालीस पेंतालिस अमरुद ही लगते थे. पर अक्सर मोहल्ले के लोग रात में चुरा के ले जाते थे. जबकि वो किसी को भी अमरुद तोड़ने को मना नहीं करते थे.बस यही कह देते थे की पकने तो दो भाई, कच्चे तो क्या करोगे खाके? पर लोग सुंनते नहीं थे.

एक बार मेरे पति के डॉक्टर माता पिता ने ठान ही लिया की किसी को अमरुद चुराने नहीं देंगे इस बार. तो रात भर के लिए एक आदमी को चौकीदारी पर रख लिया गया. एक भी अमरुद चोरी नहीं हो पाया. कमाल की बात ये थी की सारा मोहल्ला बैंक में या फिर सरकारी नौकरियां करने वाले पढ़े लिखे लोगों से आबाद था. 


सं उनीस सौ पेंसठ के उस मोहल्ला चोरी को रोकने का खामियाज़ा आज तक हमारा अलीगढ का घर भुगत रहा है. मोहल्ले वालों ने अपने घर का कूड़ा मेरे ससुराल के घर के आगे फेंकना चालू कर दिया की डाक्टर डाक्टरनी ने अमरुद न तोड़ने दिए तो उनके घर के आगे कूड़ा फिंकने लगा. 

ये पढ़े लिखे मध्यम वर्गीय ही नहीं विदेश में बस रहे करोड़ों कमाने वाले भारतीयों की भी मानसिकता है. यहाँ इस छोटे से खाड़ी देश में हों या फिर सुदूर यूरोपीय देशों में या फिर अमरीका इंग्लैंड हो. दूसरों के घरों के आगे से फूल सब्ज़ी फल बिना पूछे तोड़ लाना हमको बाप के माल को उठाने जैसा लगता है. यहाँ तो हाल ये है की कोई भी भारतीय त्यौहार हो तो बड़ी कोठियों के मालिक अपने गेटों के आगे लगे बड़े फूलों के गमले या तो अंदर लगवा देते हैं या फिर चौकीदार बाहर बिठा देते हैं. जहाँ ईमानदारी और शराफत के झंडे गड़ते हों वहां पे कुछ भारतीय गृहणियां अपने घर के आगे रंगोली डालने को किसी भी हद तक जाके फूल चुरा लाती हैं क्यूंकि हाइपर मार्किट में महंगे फूल कौन खरीदे? 

मेरी पड़ोसन ने अपने बांग्लादेशी सफाई वाले को एक थैली देके कहा की चलो फलाने बंगले के आगे से निम्बू तोड़ लाते हैं बहुत सारे लगे हैं. उसने चट से पुछा की आपने उस बंगले के मालिक से अनुमति ले ली क्या? बताओ क्या इज्जत रह गयी खुद की और अपने देश की? 

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