We Indians are the biggest Donald Trumps! 


सबसे बड़े डोनाल्ड ट्रम्प कौन? हम भारतीय! परसों रात एक जवान इंजीनियर बिना बात के अमरीका में मारा गया! सिर्फ इसीलिए क्योंकि वो शक्ल सूरत में अरबी मुस्लिम जैसा दिखता था. उसकी पत्नी इंटरव्यू दे रही थी. न सामान्य थी, न रो पा रही थी बस अपने पति की याद में खुद को समेटे हुए. 

अभी और जीना होगा उसको, संघर्ष करना होगा उसको. ऐसा होता क्यों है? कभी सोचा है? 

ट्विटर पे, फेसबुक पे और अखबारों में सब जगह लोग डोनाल्ड ट्रम्प को उलटा सीधा बोल रहे हैं. और सबसे ज्यादा भारतीय आगे हैं. खुद को देखा है कभी? बांग्लादेशी नेपाली पसंद नहीं हैं हमको अपने देश में. पर खुद विदेशो में जाके पैसा कमाना बहुत अच्छा लगता है. 

घरवाले,ससुराल,घर,मोहल्ला,शहर,जिला,प्रदेश,देश सब कुछ पीछे छोड़ के सिर्फ भारतीय पासपोर्ट लेके विदेश में आते हैं ताकि चार अच्छे पैसे कमाके अपने वतन लौट सकें. पर विदेशों में आके अपने अपने प्रान्त के ग्रुप बना लेते हैं. 

अपने बच्चों को भी यही सिखाते हैं की अपने जाति वाले बच्चों से दोस्ती रखो, दूसरे प्रान्त वाले ऐसे होते हैं. हमारा खाना उनसे विभिन्न होता है. हम ज्यादा संस्कारों वाले होते हैं. स्कूल में अपने बच्चों को अपने प्रान्त वाले बच्चों से ही मेल जोल रखने को कहते हैं.

कुछ बेहद सुलझी हुयी मानसिकता के लोग हमारा भारत कहते हुए एक ग्रुप बना लेते हैं तो उसमे भी लोग अपने प्रान्त के लोग जरा कम हैं की शिकायत करते पाए जाते हैं. हमको बस भारत में हो रही बलात्कारों की घटनाएं या फिर चुनाव के दंगल ही एक कर पाते हैं वरना हमे कोई भी किसी भी हालात में एक नहीं कर सकता. क्योंकि हमारा खाना पीना अलग है. हमको एक दूसरे के घरों की खुशबु पसंद नहीं है. सिर में लगाए जाने वाले तेल पसंद नहीं हैं. खान पान के तरीके पसंद नहीं हैं. हम बस खुद को सर्वोच्च मानके अपने अपने प्रांतो के लोगों में घुस के रम जाना पसंद करते हैं. 

दुःख इसीलिए ज्यादा होता है की पीछे देश में जाति पाती या धर्म से सम्बंधित मुद्दे पीछा नहीं छोड़ते और दूर विदेशों में आकर भी हम अपनी उसी मानसिकता से ऊँचे उठ नहीं पाते की सिर्फ हमारे प्रान्त के लोगों में उठ बैठ के हमारे बच्चे अपने समाज की बोल चाल सीख पाएंगे. पीछे मुड़ के देखती हूँ तो कितनी ही लडकियां आज भी कुंवारी है की रंग गोरा नहीं है, पिता के पास ज्यादा दहेज़ नहीं है और छोटे शहरों में रहने के कारन ज्यादा रोज़गार के साधन नहीं हैं. फिर माता पिता लड़कियों को दूसरे शहरों में भेजने में झिझकते हैं. 

इन सब झंझटों से ऊपर बिलकुल अलग जब हम महिलायें विदेश में आ बसती हैं और वोही घिसापिटा रवैया शुरू कर देती हैं तो बहुत चुभता है. हम कब वसुधेव कुटुम्बकम की महत्वता को समझ के एक भारत एक भारतीय की भावना जागृत करेंगे? 

क्यों करते हैं हम ऐसा? क्या हीन भावना होती है या फिर क्या असुरक्षा की भावना होती है मन में की हम अपने दायरे से बाहर निकलना न तो खुद पसंद करते हैं? क्यों अपनी उच्च शिक्षा और भारतीय पासपोर्ट का अपमान करने पे उतारू हो जाते हैं हम? 

कभी विदेशों में देखा है ऐसा करते हुए? नहीं न. जर्मनी वाला जर्मन ही रहता है. केनेडियन कनाडा का ही रहता है. अमरीका वाला हर व्यक्ति खुद को अमरीकन ही मानता है.

हम बाहर जाते हैं भारतीय बनके और जाके गुटों में बंट जाते हैं. क्या हासिल होता है हमको अपनी इस मन में छिपी हीन भावना या फिर दिमागी सर्वोच्चता के खोखले ख्यालों से? 

अगर कभी कोई दूसरी धरती के प्राणी हमारी धरती पे आ गए तो वो हमको कैसे देखेगा? हिन्दू मुसलमान ईसाई पारसी सिख या फिर धरती के प्राणी के रूप में? यही तो है हमारी उसकी पहचान जिसको भूल के हम सिर्फ अपनी अपनी जाति धर्म के बारे में सोचते रह जाते हैं.

जब भी डोनाल्ड ट्रम्प को गालियाँ देने का मन करे तो थोड़ा रुक के हम अगर ये सोच लें की हमें भी अपनी मानसिकता सुधारने की जरुरत है तो देश जाति और नस्ल से ऊपर उठके पहले इंसान बन जायेंगे हम लोग. 🙏🏼

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