Western and Indian bathing culture v/s bathroom tub! (Hindi post) 


पहले पुरुष फिर बच्चे उसके बाद नौकर और सबसे बाद में घर की महिलाएं. मध्ययुगीन पश्चिमी देशों में एक टब पानी में नहाने का क्रम.यानी सबसे गंदा कीचड़ पानी औरतों के लिए.वो भी महीने में एक बार नहाया जाता था.

लोगों में इस बात को लेके दूर दूर तक कोई जागरूकता नहीं थी की स्वच्छ पानी को जीवन में उपयोगी स्थान दिया जाये. 

 और नहाते हुए अगर उस टब में किसी ने मूत्र आदि कर दिया उसकी भी कोई गारंटी नहीं थी. महिलाओं को उसी पानी से स्नान करना पड़ता था. 

आजकल एक बेहद मशहूर टीवी सीरियल और मूवी का चलन है “गेम ऑफ़ थ्रोन्स” उसमे आप कभी महिलाओं के नहाने के दृश्य देखें. पानी कितना बचा बचा के इस्तेमाल किया जाता था यह देखें.

परन्तु भारत में आदि काल से हमेशा घर की महिला ही सबसे पहले नहाती आयी है.भारत में रोज़ नहाना अनिवार्य माना जाता था और वो लोटे और बाल्टी से ताकि हर व्यक्ति चाहें थोड़े से ही पानी से नहाएं परन्तु स्वच्छ पानी से नहाएं. हमारे यहाँ नदी, तालाब, कुएं और बावड़िओं द्वारा अनंत काल से स्वच्छ पानी की महत्वता को मान्यता दी गयी. 

अपने देश और संस्कृति को पहचानें! अपनी भारतीय संस्कृति में छोटी छोटी बातों में महिलाओं को दी जाने वाली इज्जत की बातों को मान दें. हर वक़्त विदेशी संस्कृति का अंधानुकरण करना भी सही नहीं है. 

अब विदेश आर्किटेक्ट भी इस बात को बढ़ावा देते हैं की जिन देशों में रोज़ नहाने का चलन है वहां बाथरूम में टब नहीं होना चाहिए. बाथरूम छोटे और हवादार होने चाहिए. 

यह बात सब ही खूब भली भांति जानते हैं की अफ़्रीकी देश ही नहीं हमारे भारत में भी कई प्रान्त पानी की कमी की गंभीर समस्या से जूझ रहे हैं इसीलिए अगर हो सके तो बाथरूम टब न लगवाएं और न ही इनका इस्तेमाल करें! 

बात बाथरूम में टब हो या न हो की है तो इस बात की भी है की हमारी रोज़मर्रा की जिंदगी में घर की महिलाओं को कितना सम्मान दिया गया है. 

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