Who will be the successor? 



अंतिम घड़ियाँ गिंन रहे थे मठाधीश अपनी! सारे चेले चपाटे इंतज़ार में थे की वो अपना उत्तराधिकारी जल्दी से घोषित कर डालें जो उस अतुलनीय दौलत से भरपूर मठ का स्वामी हो जाये जिसकी वैभवता के आगे बड़े बड़े राजा महाराजा भी सिर झुकाते थे. कहा जाता था की मठ के सोलह हजार दरवाजे ठोस सच्चे सोने से जड़े हुए हैं. हर दरवाजा कम से कम दो सौं किलो का था. सुदुर दक्षिण प्रांत के अरण्य दुर्गम रास्तों से गुजर के एक पहाड़ी पर बना हुआ मठ अनेको बार चोरों और डाकुओं को अपने वैभव से दुर्दांत चोरियों को आमंत्रण देता रहा था पर सभी के सभी अंधे हो जाते थे पहाड़ी के पास पहुँच के. 

पास के चार सौ गांव का मालिक था ये मठ. किसी पुरातन चोल राजा को अधेड़ उम्र में इस मठ के संस्थापक संत की कृपा से चार पुत्रों की प्राप्ति हुयी थी. उसने अपना एक चौथाई वैभव और जायदाद इस संत को प्रदान कर दी थी. श्रुतिओं में कहा जाता है की जाने कितने महीनो तक बैलगाड़िओं में भर भर के खजाना इस मठ के गर्भ गृह में दबाया जाता रहा था.

पर इतने अकूत सम्पदा संपन्न होने के बाद भी संतो ने एक ही परंपरा का पालन किआ था की अगला मठाधीश वोही चुना जायेगा जो निर्मोही हो और ग्यानी भी. तभी शायद ये वैभव इतने सालों से अनछूआ वैसा का वैसा ही पड़ा था. 

सारे शिष्यों में एक जिज्ञासा थी की अब कौन? एक एक करके सारे शिष्यों को मरणासन्न मठाधीश के उस कमरे में भेजा जाने लगा जहाँ जीते जिंदगी उन्होंने किसी को आने नहीं दिआ था. 

भारी सोने के दरवाजे से गुजरते हुए शिष्ये उस रत्नजड़ित पलंग पे पहुँचते जहाँ दुर्बल अवस्था में भी सूर्य सामान चमकते चेहरे वाले गुरु चित पड़े थे. वो हरेक को यहीं पूछ रहे थे – जीवन क्या और मृत्यु क्या? सब अपनी अपनी समझ से जवाब देके बहार आते जा रहे थे.

समय बीत चला और आखिर में रह गया मठ के सफाई कर्मचारी का सीधा साधा बीस वर्षीय पुत्र सोहम जो दिन रात या तो पिता के साथ मठ की सफाई में लगा रहता या फिर जब मठाधीश सत्संग करते तो वहीँ कोने में सोता रहता. कभी मठाधीश को उस पर दया आती तो उसको गांव से आये हुए मीठे फल या शहद का प्रसाद दे देते. एक बात मठाधीश उसको साथ ही धर्म यात्रा पर श्रीलंका भी ले गए थे वहां उस मंदिर में जाके जहाँ भगवन बुध का दन्त सहेजा गया है वो मठाधीश के चरणों में लौट गया की इतनी पवित्र जगह के दर्शन का सौभाग्ये मिला उसको.
जब उसको सबसे अंत में कमरे में भेजा गया तो शाम का समय हो गया था. सारे शिष्ये गुरु की हालत देख बेकल हो चले थे की आज रात बहुत भारी है शायद वो बचे ही न और उत्तराधिकारी मिला नहीं. 
कमरे में प्रवेश करके सोहम ने मठाधीश को सदर प्रणाम किआ और उनके मुँह से बहते द्रव और रक्त को बड़े स्नेह और अधिकार से साफ़ कर दिआ. जबकि सारे शिष्ये घिन के मारे उनसे दूर ही खड़े रहे थे. 
सोहम ने एक कटोरी में शहद और ताज़ा नदी का जल मिलके मठाधीश को पिलाया. मठाधीश की आँखों में चमक आयी और वो मुस्करा उठे. बोले सोहम तुम हो क्या?
“जी गुरूजी” कहके रोते हुए सोहन ने उनके चरणों में सिर रख दिया. आँखों से यह सोच के अश्रु बह निकले की अब मुझ अछूत कौन इतना स्नेह देगा जितना ये मठाधीश देते थे. 
मठाधीश बोले “सोहम ये बताओ जीवन क्या मृत्यु क्या?”….
सोहम ने अश्रु पोंछ के कहा “गुरूजी ज्ञान की निरंतर जिज्ञासा जीवन है परन्तु खुद को परम् ज्ञानी महसूस करना मरण है”! 
गुरूजी के कमरे में झाँक रहे सभी शिष्यों के मुँहँ खुले के खुले रह गए. 
अब गुरूजी ने वो काम किआ जो किसी ने सोचा भी नहीं था. उन्होंने अगला प्रश्न किया “परम् ज्ञानी कौन है?” सोहम ने सिर झुका के कहा “सिर्फ एक वर्ष का शिशु परम ज्ञानी होता है क्यूंकि वो झूट बोलना सीख लेता है की किस तरह रोने से उसकी इच्छाएं पूरी कर दी जाएँगी”…
गुरूजी की दी लाल पताका लिए जब सोहम कमरे से बहार निकला तो मठाधीश ने शांत हृदये से अपने इष्टदेव को नमन कर अपनी अंतिम सांसें ले ली! 

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