Why, we the well educated Indians are irked with Arvind Kejriwal?(Hindi post).

हम पढ़े लिखे भारतीयों को अरविन्द केजरीवाल पर गुस्सा क्यों आता है? 

हम यहाँ अरविन्द केजरीवाल की तारीफों का पुलंदा बांधने के लिए नहीं बल्कि उन तथ्यों पर एक ईमानदार अवलोकन करेंगे जिनकी वजह से हम अरविन्द केजरीवाल नाम के उस व्यक्ति से इतनी घृणा करते हैं की हम उसको दिन रात गालियां देते रहते हैं. 

अरविन्द केजरीवाल बेहद प्रतिष्ठित मैगसायसाय अवार्ड के सम्मान से नवाज़े जा चुके हैं. ये अवार्ड जैसा की सब जानते हैं सर्वश्रेष्ठ मानव जीवन के लिए सहायता करने वाले को ही दिया जाता है. आज भारत देश में जितने भी राजनेता हैं उनमे से शायद ही किसी को इस पुरूस्कार के लायक समझ गया है. ये पुरूस्कार एक बेहद उच्च स्तर की जाँच पड़ताल और व्यक्ति के मूल जीवन संघर्ष को समझ कर ही दिया जाता है. अरविन्द केजरीवाल इस पुरूस्कार को पाकर उस सर्वोच्च कतार में जा खड़े हुए जिसमे उनसे पहले आचार्ये विनोबा भावे, मदर टेरेसा, सत्यजीत रे, मुरलीधर आमटे, महाश्वेता देवी, रवि शंकर, किरण बेदी जैसे व्यग्तिगत प्रयासों से संघर्ष करके लड़ते लोग पहले ही खड़े थे. 

उस वक़्त बस कुछ अखबारों में हल्का सा जिक्र भर हुआ की किसी अरविन्द केजरीवाल को भी इतना प्रतिष्ठित अवार्ड मिला है. बाद में जब अन्ना हजारे के साथ अरविन्द केजरीवाल जुड़े तब जरूर मीडिया ने इस बात को खूब बढ़ा चढ़ा के पेश किया. 

अरविन्द केजरीवाल भारत के सबसे प्रतिष्ठित आई आई टी इंस्टिट्यूट,खड़गपुर(मेरी सास के भाई डॉ महेश्वर प्रसाद वार्ष्णेय वहां के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट के संस्थापक प्रोफेसर्स में से एक रहे) से पढ़कर बाहर निकले तो भी उनकी छवि बेहद ईमानदार, सीधे और जमीं से जुड़े छात्र की ही रही हमेशा. कोई विवाद या झगड़ा या राजनीती से जुड़ाव सामने नहीं आया. वो एक मध्यम वर्गीय आम छात्र थे जिनके सपने भी आम ही रहे होयँगे शायद.

पर भारत के सभी सरकारी स्कूलों में या इंस्टिट्यूट्स में पढ़ने वाले बच्चों के अंदर एक विरोध विकसित होने ही लगता है क्योंकि हमने अपने धुरंधर, बेशर्म, गुंडे और चालु राजनीतिज्ञों बचपन से ही चुनावों के समय वोट मांगते वक़्त बड़े से बड़े भिखारी को मात देते देखा है. बस फ़र्क़ होता हैंकि भिखारी वायदे नहीं करता. वो दुआएं देके आगे निकल लेता है.

अरविन्द केजरीवाल के पिता जी भी बिड़ला इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी, मेसरा से पढ़के निकले इलेक्ट्रिकल इंजीनयर रहे हैं और उनका जीवन भी बेहद सादगी और ईमानदारी का प्रतीक रहा है. अरविन्द केजरीवाल मदर टेरेसा के कार्यों में योगदान के लिए भी जाने जाते हैं और वो कुछ समय के लिए नेहरू युवा केंद्र से भी जुड़े रहे.

वो भारत देश की काफी कठिन मानी जाने वाली आई आर इस (IRS ) प्रतियोगिता क्वालिफाय करके असिसटेन्ट कमिश्नर फिर बाद में ज्वाइन कमिश्नर भी बने. इस सम्बन्ध में कई विवाद हैं पर वो विवाद अरबों रुपयों के लूटखोर राजनेताओं की तुलना में सिर्फ व्यवस्था से लड़ने को उद्ग्विन एक युवा मनःस्तिथि की बेकलता ही माने जाने चाहियें. क्योंकि एक तरफ घर बार चलाने की अपेक्षाएं होयेंगी तो दूसरी तरफ भ्रष्ट व्यवस्था से लड़ने की मनःस्तिथि भी रही होगी. 

हम खुद कुछ भी ना करें समाज के लिए या फिर अपने देश के लिए परंतु जब इस तरह के फ़ालतू और पैसा खाओ मीडिया द्वारा प्रायोजित विवाद सामने आते हैं तो हम सबसे आगे खड़े होके केजरीवाल को गालियां देनी शुरू कर देते हैं. हम अपने सर पे खड़े उन भ्रष्ट रावणो को कुछ कहने की हिम्मत नहीं करते जिनके अतीत में रक्त, भ्रष्टाचार, बदनामी और दुश्चरित्र व्यवहारों के पन्ने पटे पड़े होते हैं. 

हम अरविन्द केजरीवाल से गुस्सा हैं क्योंकि वो हमारे बीच के नेता हैं, वो हमसे आगे निकल के एक ऐसी चेतावनी बनके खड़े हो गए जिनकी वजह से आज भारतीय राजनीति का पूरे परिप्रेक्ष्य में देश का विकास आगे आ गया है. वरना हम इतने दशको नही बल्कि सालों से ये नहीं पता लगा पाए की देश में राज करने वाले एक विशेष परिवार का खुद का असली धर्म क्या है? उस परिवार के परदादा कौन थे और क्यों वो अपने अंतिम संस्कार हिन्दू रीती से करते रहे जबकि वो कहने के लिए दूसरे धर्म के थे? धर्म की राजनीति करने वालों ने भी कभी इस बात को मुद्दा नहीं बनाया क्योंकि अरविन्द केजरीवाल

एक तरफ और बाकी सारे भ्रष्ट नेता एक तरफ हैं. ये काले कारनामे करके बड़े तेल उद्योगपतियों की गोद में खेलने वाले वो लोग हैं जिनको देश की सम्पदा की संरक्षा करनी चाहिए परंतु एक ईमानदार आदमी के राजनीति में आते ही इन लोगों को इतनी ज्यादा असुरक्षा का सामना करना पड़ रहा है की देश के सारे मीडिया को जाने कितने रुपए खिलाके मानो एक गुप्त सन्देश दे दिया गया हो की दिल्ली सरकार की आम जनता के लिए की जाने वाली मेडिकल सुबिधाओं के सुधारों की अगर यूनाइटेड नेशन्स भी तारीफ करे तो कहीं नहीं चर्चा हो! अगर दिल्ली सरकार के प्राइवेट और सरकारी शिक्षण संस्थानों की सुधार की कोई विदेशी सरकार तारीफ करे तो भी कहीं जिक्र नहीं होना चाहिए. 

परंतु अचानक दिल्ली सरकार का अगर कोई लोभी मंत्री कहीं कुछ गलत काम पकड़ा गया तो उसको जनता को बताते बताते पैसा खाऊ भारतीय मीडिया इतना चिल्लाया की रक्षा दलाली में रूसी लड़कियों के साथ समय बिताते एक सत्तारूढ़ युवा राजनेता की ना तो फोटो बाहर आने दी गयीं न उनके अनेकों वीडियोस बाहर आने दिए गए.
राजनीति बहुत गन्दी चीज़ है लोग कहते हैं पर जब हममें से एक खड़ा होके कुछ करने की कोशिश भी करता है तो हम हीन भावना से ग्रस्त हो वो पडोसी बन जाते हैं जो बाजू वाले के बच्चे को विदेश में नोकरी करके आगे निकलता देख छाती पीट के रोने लगता है. फिर हम उस बच्चे से ये उम्मीद करने लगते हैं की जब वो विदेश से लौटे तो हमारे लिए भी कुछ लेता आये. 

अरविन्द केजरीवाल को गालियां देने में वो लोग भी बहुत बड़ी संख्या में शामिल होंएंगे जो की उन्ही की तरह काबिल होएंगे पर बड़ी नोकरियों में बैठ के सिर्फ सरकार को कोसते रहते हैं पर अचानक एक चुनौती बनके देश के भ्रष्ट सत्ता लोलुपों को ईमानदारी का आईना दिखाने वाले अपने साथी को देख चौंक से गए होएंगे. मन ही मन हम सब कुढ़ते रहते हैं की ये आदमी एक दिन में अगर ये कर दे तो वो कर दे तो? पर जमीनी सच्चाई कम लोग जानते हैं. 

आज मेरे परिवार की तीन तीन सरकारी टीचर खुद परेशान हैं की अरविन्द केजरीवाल की वजह से स्कूल से कभी भी घर आ जाने की सुविधा समाप्त हो गयी है. लग्न से पढ़ाना पढता है. खुन्नस है की क्यों सुधार हो रहे हैं. बात का लब्बोलुआब ये की उनको सुधारों से तकलीफ है क्योंकि एक भ्रष्ट जीवन की आदत सी हो गयी है. परंतु जब तनख्वाह बढ़ी तो भी यही बोली की ये तो कभी न कभी बढ़ ही जाती. 

हमे अब आदत हो गयी है की लोगों के सुर में सुर मिलाके बोलो “अभी विदेश गए थे तो वहां का सिस्टम ही अलग है, भारत में कुछ न हो सकता”… यार सुधार करने दोगे तब न सुधार होगा? ऐसे ही अगर ईमानदार लोगों को पत्थर मारते रहोगे तो बच्चों के बच्चे में ऐसे ही कुढ़ते हुए जियेंगे. 

हम लोगों को रातोंरात चमत्कार करने वाला व्यक्ति चाहिए जो की दो मिनट में बनने वाली मेग्गी की तरह स्वच्छ भारत हमारी थाली में परोस दे. जबकि उसका चूल्हा चक्की पैसा सबकुछ कोई और रोक के उसको काम न करने दे.

चाहें हम कई दशको तक एक भ्रष्ट और दुनिया के सबसे अमीर राजनितिक परिवार के तलवों तले उफ़ तक कर पाएं हो उठ कर गुर्राना तो दूर की बात है. 

अरे अरविन्द केजरीवाल को कुछ पावर तो दो हाथ में की वो कुछ करके दिखा पाएं साबित कर पाएं?   जब तक भारत के हर घर के बाहर एक सरकारी कूड़ादान और उसको नियमति रूप से साफ़ करने वाला सरकारी कर्मचारी न आये समझ लीजिये हमको सिर्फ एक अरविन्द केजरीवाल को गालियां देने से काम नहीं होगा, हजारो अरबिंद केजरीवालों को आगे आकर देश के लिए उनकी तरह ही स्वच्छ राजनीति के लिए संघर्ष करना ही होगा. 

उनका मानहानि का मुकद्दमा खुद के लिए नहीं है ये राजनितिक शुचिता की लड़ाई है और संघर्ष सत्ता के उच्च स्थानों में बैठे उन अहंकारी लोगों से है जिनको खुद भी शायद नहीं पता की कितनी अथाह संपत्ति के मालिक हैं वो. 

कुछ नहीं कर सकते तो कम से कम बेकार विरोध भी न करें. इससे सिर्फ बुराई के पैरोकार लोगों के होए बुलन्द होते हैं और ईमानदार आवाज़ें फिर दब जाती हैं.  

 

2 thoughts on “Why, we the well educated Indians are irked with Arvind Kejriwal?(Hindi post).

  1. Vikas Amitabh says:

    He is shameless crook of the millennium !

    Kejriwal has hired Ramjethmalani to fight his personal case against a defamation suit filed by Arun Jaitley. But instead of paying from his own pocket, he wants govt to pay the fees which is Rs.3.8cr.

    How do we throw this crook out of Delhi ?

Leave a Reply to Prachi Varshney Cancel reply