हम हैं आज के मोबाईल धारी इंडियंस। ख़ुद अपने लिए या फिर अपने पूरे शहर के लिये नगर पालिका से एक कचरे का डिब्बा नहीं माँग सकते। एक फ्री का ईमेल नहीं लिख सकते की हमको हमारे दरवाज़े पर एक बड़ा सा कूड़े का डिब्बा दो और उसको समय पर उठवाओ भी। पर हाँ फ्री टाईम में एक ऐसे दिग्गज वकील गांधी जी को गाली देके अपना मन बहला सकते हैं जो भीषण गर्मी में जब चंपारन पहुँच कर नीलदार की दशा के लिये आवाज़ उठाने की शुरूआत कर ही रहा था की उसपर बिना बात के १६-१७ मुक़दमे लगा दिये गये। इस बात से शुब्ध होकर उन्होंने अपने सारे मैडल अंग्रेजों को लौटा दिये थे। २००-३०० किलोमीटर की डांडी यात्रा करना भी कोई हंसी खेल नहीं था। ऊपर से कांग्रेस का अधिवेशन भी शुरू हुआ था और सरदार पटेल को सिर्फ़ दो लाइंस बोलने पर जेल भेज दिया गया था। गांधी जी को अपशब्द बोलने से पहले के सहयोगी महादेव भाई देसाई और हरि भाई के बारे में ही पढ़ लीजिए कभी। बड़ी ही हैरानी होती है की चार चार अख़बारों के संपादन के साथ साथ साबरमती आश्रम का निर्माण, अंग्रेज सरकार के साथ ख़तो किताबत, फ़िरोज़ गांधी के घर की विशाल लाइब्रेरी की सूचियाँ बनाना, कितनी ही बंगाली किताबों का अनुवाद, रोज़ मिलने आने वालों की अपॉइंटमेंट, संपादकों से बापू का इंटरव्यू लिख कर फ़ाइनल ड्राफ्ट बनाना, गांधी जी के खाने पीने का ध्यान रखना, ये कोई आसान बात नहीं थी। जालियाँवाला बाग कांड के विरोध में जब गांधी जी को गिरफ़्तार किया गया तो उनके गुरु (बड़ौदा हाईकोर्ट के जज) अब्बास तैयब जी के साथ रोज़ के २०-३० पत्र संवाद बनाये रखने के लिए कोई आसान बात नहीं है रहा होगा। हम कितनी आसानी से वकीलों की बड़ी पाँत को भला बुरा बोल देते हैं सोशल मीडिया पर जिनकी वजह से हमें आज़ादी मिली थी। अंग्रेजों से लोहा लेना उस बड़ी आबादी के लिये हंसी खेल नहीं था जोकि बिलकुल पढ़े लिखे ही नहीं थे या फिर ज़्यादातर पढ़ेलिखे तो सरकारी नौकरी के लिये लालायित रहते थे। जो व्यक्ति सिर्फ़ दो जोड़ी कपड़े और एक नन्ही सी डिब्बी में चने मूँगफली लेकर चंपारण पहुँच कर भारत का सबसे पहला संगठित सत्याग्रह शुरू करने के लिए अकेला पहुँचा हो और यहाँ तक की क्रूर अंग्रेज़ी पुलिस से भी ना डरा हो, उसके लिए दिल में अपार सम्मान होना ही चाहिए। चित्र – १- अब्बास तैयब्जी २- महादेव भाई देसाई ३- निर्मल कुमार बोस mahatmagandhi गांधी gandhi nirmalkumarbose mahadevbhai mahadevbhaidesai abbastayyabji
Do you know? This is Mohun’s cornflakes. This brand is going through a massive domination and bullying by Kellogs and Reliance in India itself. Government of India is quite. Amazon n Flipkart are so scared that they are not selling it with a tag of “Out of stock”. How is that possible that one brand whose popularity is increasing day by day is not increasing the production? Google this mysetrious fight of cornflakes brand in India. If you wish to help Swadesi, pls buy a pack and let company know that they got India’s support. 🙏🏻 mohun #mohunscornflakes #survivor #indiafightsback #cornflakes
In the morning’s gentle embrace, I rise, To savor flavors, a delightful surprise. A breakfast tale, woven with delight, Of hummus and bread, from the starry night. Leftovers of Arabic fare, a treasure untold, Whispering secrets of flavors, bold and bold. The hummus, a creamy canvas, smooth and divine, Touched by spices, a symphony in every line. With humble bread as my faithful guide, I embark on a journey, my senses open wide. The aroma dances, as memories unfold, Of shared laughter and stories, precious and gold. As I dip my bread into the hummus sea, A taste of enchantment fills the air around me. The tangy garlic, a celestial kiss, Mingling with lemon’s zesty bliss. Each bite unveils a tale of distant lands, Where ancient spices dance on desert sands. Cumin and paprika, a vibrant affair, Transforming simple ingredients with flair. The bread, a companion, rustic and true, Absorbing tales of the night, as it’s meant to do. It cradles the hummus, a vessel so kind, Uniting flavors, in harmony they bind. With each delicious morsel, my spirit awakes, A symphony of flavors, a journey it takes. From the humblest of feasts, a feast of the soul, A breakfast of memories, forever untold. So let us savor the remnants of the night, Embrace the magic, bask in its light. For in these leftovers, a story unfolds, A breakfast of hummus and bread, forever cherished and bold.
क़िस्सा फ़्राइड राईस का- स्वरचित – प्राची वार्षण्य (मेरी ख़ुद की वेबसाईट prachiable.com पर प्रकाशित है) मनीषा जी फ्रिज के सामने खड़ी बड़ी टेंशन में थीं। पोती पलक स्कूल जाने के लिए अभी अभी सो कर उठी थी। नहाने गई तो उनको उठा दिया था। उसको आज स्कूल में स्टेबैक भी है तो कुछ हेवी और फिलिंग बनाकर देना था। बहू बेटा तो ऑफिस चले गये थे सुबह ही छह बजे। नोएडा से गुड़गाँव जाना वो भी सोमवार के दिन। कोई महायुद्ध से कम भी नहीं था। मनीषाजी को फ्रिज की दूसरी शेल्फ पर एक डिब्बी में उबले हुए चावल दिखे। ये तो उनका बेटा अमित ऑफिस में मिलने वाली खाने की ट्रे से उठा के ले आया करता था कभी कभी। उनकी आँखें चमक उठी। उन्होंने फटाफट वो डिब्बी निकाली। जल्दी से एक बड़ी गाजर घिस कर थोड़ी सी बन्दगोभी चॉप की। अदरक लहसुन ग्रेट करके उसमे एक बड़ा प्याज़ भी लंबा लंबा काट कर मिला दिया। साथ में दो हरी मिर्चें और जरा सा हरा धनिया भी कतर लिया। फटाफट हाई फ़्लेम पर एक नोन स्टिक पैन में देसी घी डाल के पहले उसमे जीरा हींग का तड़का डाला फिर लहसुन हरी मिर्च हरा धनिया अदरक भूना और उसमे प्याज़ मिला के जल्दी से फ्राई करके सारी सब्ज़ियाँ भून लीं। अब पालक ने बाथरूम से चिल्लाया दादी छींके आ रही हैं आप क्या कर रही हो? मनीषा जी मुस्कुरा के चुप ही रहीं, अभी तो लाल मिर्च भी पड़ेगी। फिर ये और ज़ोर से चिल्लायेगी। सोचते हुए उन्होंने तीस सेकंड के लिए उबले चावल की डिब्बी माइक्रोवेव में रखी और फिर उबले चावल पैन में भुनती हुई सब्ज़ियों में मिला दीं। जरा सा व्हाइट विनेगर डाल के सब अच्छे से फ़्राई किया। और गैस बंद कर दी। बड़े वाले लंच बॉक्स में १ केला चार पाँच बिस्कुट दो टॉफ़ी और फ़्राइड राइस रख कर पैक किए, साथ में दो जूस के टेट्रा पैक और पानी की बोतल रख दी। अब भी पैन में आधे फ़्राइड राइस रखे थे। उन्होंने फटाफट अपने लिए वीके प्लेट में निकाल कर एक ग्लास में फेंटा डाली और नाश्ता करने लगीं। पालक ने आकर सब कुछ अपने स्कूल बैग में रखा और बोली “वाह दादी जरा से चावल इतने सारे बन गये”? तो मनीषा जी हंस कर बोलीं “तेरे लंचबॉक्स में भी यही दिये हैं”! पलक बोली “दादी आपके हाथ के खाने के तो मेरे टीचर्स भी दीवाने हैं”। मनीषा जी को बहुत अच्छा लगा। बोलीं “मेरे बैंक के कॉलीग्स तो खूब खाते थे और बाद में कहते थे कि आप बहुत ही स्पाइसी ख़ाना हो मिसिज मित्तल”। पलक ने मुस्कुरा के कहा “आपने ना मम्मी को बिगाड़ के रखा है दादी, बल्कि आप दोनों ने एक दूसरे को बिगाड़ रखा है”। मनीषा जी ने साफ़ी मिक्स्ड पानी का ग्लास पालक की तरफ़ सरकाया और हंस दीं ” हम है चटोरे दोनों सास बहू इसीलिए सारा दिन बर्गर पिज़्ज़ा चाट के प्लान बनाते हैं और तुम और तुम्हारा पापा जाओ जिम और खाओ उबले खाने और सेलेड”। “चलती हूँ दादी और हाँ आपके चटोरेपने में भाई को भी शामिल करो जो सारा दिन आपके बनाये मठरी अचार और लड्डू बर्फ़ियों का भोग लगाता है”। मनीषा जी उठकर दरवाज़ा बंद करते हुए बोलीं “याद रखना कल तेरे स्कूल बस ड्राइवर के लिए भी दूँगी एक डिब्बे में”। पलक सीढ़ियाँ उतरते हुए हंसी”सबको खाऊ बना रखा है आपने दादी, चलो आप दरवाज़ा लगा लो, बाय बाय”। मनीषा जी भी मुस्कुराते हुए वापस हो लीं।
In a cozy little corner, where the sunbeams gently play, Lived two cats so lazy, who snored the whole day away. From sunrise to sunset, they’d slumber and they’d snore, Their bellies full of treats, oh, what a life they bore! One was named Sir Snugglepaws, with fur as black as night, The other, Lady Whiskers, with eyes so shining bright. They’d curl up on the sofa, their snores in perfect tune, Dreaming of grand adventures while they slept away till noon. Oh, Sir Snugglepaws, he loved to eat, his appetite immense, He’d gobble up his breakfast, then demand a second chance. From fish to fowl to cheesy bites, he devoured with delight, His belly round and jiggly, a truly comical sight! Lady Whiskers, on the other hand, had more refined tastes, She dined on fancy feasts and caviar without a moment to waste. She’d lick her paws so daintily, her manners so genteel, A queen of culinary art, with a sophisticated zeal. Together, they would nap, their contentment on display, Dreaming of catching mice and chasing squirrels all day. But as soon as they awoke, their hunger would arise, And off they’d go to feast again, with voracious appetites. They’d scamper to the kitchen, their tails held high with glee, In search of tasty morsels, as happy as could be. From tuna treats to catnip snacks, they’d eat without restraint, Their love for food, a never-ending, insatiable enchant. So, if you ever see them, those cats so full of bliss, Remember their grand passion for a life of pure abyss. For all they do is sleep and eat, but in their own sweet way, They’ve mastered the art of relaxation, each and every day!
असल में ये फ़िल्म का रिव्यू लिखने का कोई प्लान नहीं था। पर फिर सोचा कि इस फ़िल्म के बारे में सबसे अच्छी बात तो यही है की कुछ मेजिकल मोमेंट्स तो हैं ही इस फ़िल्म में। वो में बीच में कहीं बताऊँगी।
तो कहानी ऐसी है की दो टीनेजर लड़के भाई हैं, उनकी चिंतित माँ उनको मुंबई में अकेला छोड़ के पुणे जाती है मीटिंग के लिये। (जूही चावला की ओवरेक्टिंग झेलनी पड़ेगी आपको)।
दोनों भाई स्कूल जाते है एक फुटबॉल मैच होता है बड़ा भाई अचानक हीरो बन जाता है। रात को फ़्राइडे नाईट पार्टी होती है। वहाँ जाते हुए रास्ते में पुलिस का लफड़ा हो जाता है। क्योंकि माँ जिस काम को मना करे वो मत करो।
असल में जितनी शराब बहती हुई इस फ़िल्म में दिखाई है वो बहुत बेतुकी है। इसके एक चौथाई से कम में भी बात बन ही जाती।
बाबिल ख़ान के क़रीब ६/७ सीन बहुत भावुक करेंगे और आप को लगेगा की इरफ़ान ख़ान थे क्या अभी अभी स्क्रीन पर? अमृत जायन तो कमाल के एक्टर हैं। उम्मीद है कि वो बॉलिवुड में टिकेंगे।
स्कूल के कई दृश्य आपको कनेक्ट करेंगे। एक इंगलिश क्लास का सीन बहुत अच्छा है। काउन्सलिंग सेक्शन की चर्चा भी दिल को कहीं ना कहीं छूती लेती है।
फ़िल्म एक बार देखने योग्य है क्योंकि इसमें पुलिस से संबंधित अवधारणा को भी अलग तरीक़े से दिखाया गया है।
मेरी रिश्तेदार के प्रश्न -और क्या हाल चाल हैं प्राची? कैसी हो? यार हमको भी कुछ ऐसा काम बताओ की तुम्हारी तरह घर बैठे कमा पाएँ! (मैं – मत पूछो बहन). ब्लॉग से पैसे आते हैं तो क्या रोज़ पोस्ट करते हैं? फ़ॉलोवर्स कैसे बनाऊँ? मेरे बस का नहीं है की इतने लोगों से अपनी किचन सीक्रेट शेयर करूँ? (मैं – मेरी सालों की लिखी डायरीयाँ काम आ रही हैं और मैं 2006 से फ़ेसबुक पर हूँ). ओह तो तुम बचपन से मैगज़ीन में लिखतीं थीं? नहीं वो देखा की १००० से ऊपर पोस्ट हैं तुम्हारी।(मैं सड़ती हुई धूप में पैदल पोस्ट ऑफिसों में और बैंकों में चक्कर काट के आई हूँ अपने पारिश्रमिकों के चेक क्लीयर करवाने को)। मुझे भी किताब लिखनी है तुम्हारी तरह पर क्या और कैसे लिखूँ क्या टाइपिंग सीखनी पड़ेगी? (मुझे याद है कि जब मेरी पहली किताब पब्लिश हुई थी तो तुम्हारे बच्चों ने कितनी गालियाँ दी थीं मेरी पीठ पीछे। कितने रिश्तेदारों में तुमने मेरा मज़ाक़ उड़ाया था।मैं हमेशा अपनी फ़ाइलें जमा करती रही, हिन्दी इंगलिश की शोर्ट हैंड और टाइपिंग में महारत हासिल है) बैग्स बेचती हो? शिपिंग में कितना जाता कितना प्रॉफिट रखती हो? (कितनी आँखें फूट जाती हैं सेलेक्ट बाय और शिपिंग के लिए ऑनलाइन – सुन लो वही बहुत है) साईट पर क्याकाम है अच्छा वाल पेपर सजेस्ट करती हो? लिंक कैसे मिले? ख़ैर तुम को तो आदत है आदमियों से बात करने की। (मेरे सालों के ऑफिस रिलीशशिप्स हैं, लोगो को हेल्प करती हूँ, लोग मेरी महनत्वकों जानते हैं)। ट्यूशन पढ़ा रही हो? कितना लेती हो हर बच्चे का? कितना घंटा पढ़ाती हो? (मेरी पॉलीटेक्निक की पढ़ाई, एग्जीक्यूटिव सेक्रेटरी का अनुभव, विदेशी एयरलाइन का कड़ा रूटीन सब धरा का धरा रह गया था जब ट्यूशन शुरू किए) हर किताब हर चैप्टर पढ़ के नोट्स बनाकर ऑनलाइन पब्लिशर्स को बेचती हूँ। बच्चों को पढ़ाती हूँ और २४ घंटे हेल्प देती हूँ तो हर साल दस से पंद्रह बच्चे टॉपर निकलते ही हैं। हर काम के लिये महिलाएँ बहुत मेहनत करती हैं। फ्री में पैसा कोई नहीं कमाता।
In the twilight’s gentle glow, a worry unfurls, A teenager’s heart, in a whirlwind of concern, For amidst the setting sun’s declining light, Her two cherished cats, they’ve yet to be in sight. She paces the floors, her thoughts intertwined, Anxiously yearning for their return, undefined, In the silence of the evening, her heartstrings play, As she wonders where her furry friends may stray. Their names dance upon her lips, a fervent prayer, Echoing through the night, awakening the air, With every passing minute, doubts start to grow, Imagining scenarios, both high and low. Did they wander too far, enticed by the moon? Or chase fleeting shadows, until late afternoon? She longs for their comforting presence, near, To ease her mind, dispel every fear. Yet, hope blossoms, like a flower in bloom, As she recalls their curiosity, their playful zoom, They’ve ventured before, always finding their way, Through meadows and alleys, where adventures lay. But still, worry lingers, like a haunting breeze, As she gazes outside, among the swaying trees, A thousand questions dance in her searching eyes, Yearning for their return, beneath starlit skies. And then, upon the horizon, a silhouette appears, Two familiar forms, drawing nearer, calming her fears, Her cats prance and purr, tails held high, As if saying, “Fear not, for we’re always nearby.” She rushes to greet them, her heart now at ease, Relief floods her spirit, like a comforting breeze, For in their eyes, a tale of adventure reprise, A reminder that love transcends boundaries and skies. Together again, as a family so pure, Their bond untouched, steadfast and sure, The worry now fades, replaced by pure delight, As they curl up together, embracing the night. For in this teenage girl’s world, both wild and free, Her cats are her solace, her companions, you see, And as they find their way back, through dark and through light, She learns the strength of love, transcending all fright.
भगवान के घर अंधेर नहीं है! स्वरचित – प्राची वार्षण्ये सुबह से मीनू जी काम में लगीं थीं। सबको चाय दी, नाश्ते की तैयारी करी, काम वाली से झाड़ू पोंछा करवा के, उसको कपड़े धोने को दिये, डिश वॉशर से बर्तन निकाल के शेल्व्स में लगाये। तरबूज़ का जूस निकाल के बोतलों में भर के फ्रिज में रखा। तरबूज़ निकल जाने से फ्रिज में काफ़ी सारी जगह हो गई थी तो पानी में पड़े आम पौंछ कर फ्रिज में लगाये। कामवाली आके बोली “कल मोली भाभी का बर्थडे था क्या”? मीनू जी चौंक कर बोलीं “हाँ था, क्यों क्या हुआ”? तो कामवाली बोली “वो अंदर अपनी मम्मी को बात कर रही हैं तो बोल रहीं हैं की इतना पैसा है पर मम्मी बहुत कंजूस हैं”. मीनू जी चुप हो गईं। अपनी बांग्लादेशी काम वाली पर उनको बहू से ज़्यादा भरोसा था। बहू की बात बात में झूठ बोलने की आदत वो एक साल में खूब अच्छे से जान गईं थी। पर चुप ही रहती थीं। क्योंकि वो सारा दिन अपने कमरे में ही रहती थी। सॉफ़्टवेयर इंजीनियर थी तो वर्क फ्रॉम होम ले रखा था। मीनू जी चुप हो गईं। उनको लगा कि बहू का ऑनलाइन ऑफिस है तो वो मीटिंग में होगी। इतनी देर से ख़ुद ही काम में लगी हुईं हैं। ये एक बार भी कमरे से बाहर नहीं निकली। और ऊपर से ये इल्ज़ाम भी की कुछ दिया नहीं। जबकि उन्होंने कल सुबह ही पाँच हज़ार बेटे को दिये थे की इसको सूट दिला लाना। वो चिल्ला भी रहा था की अभी पिछले हफ़्ते तो तीजो की दस हज़ार की शॉपिंग कराई है आपने। अब क्यों दे रही हो? पर उन्होंने ज़बरदस्ती बेटे को थमा दिये थे क्योंकि बहू लैपटॉप पर बिजी थी। कुछ ही देर बाद ही उनका बेटा मोहित बाहर से बाल कटवा के वापस आया तो उन्होंने पूछा कि क्या कल तुम लोग ने कुछ ख़रीदा था मेरे दिये पैसों का? तो वो बोला की दिये तो थे, पर उसने कहा की जब बाय वन गेट वन की सेल लगेगी तो तब ख़रीद लूँगी। अभी रख लेती हूँ। मीनू जी ने कहा की “सही तो कहा उसने, समझदार है ख़ूब”। मोहित हँसता हुआ बाथरूम में चला गया। थोड़ी देर बाद जब पराँठों की ख़ुशबू उड़नी शुरू हुई तो बहू ने कमरे से बाहर झांक के कहा “मम्मी नाश्ता रेडी हो गया, मैं आके ले लूँ”? मीनू जी ने कहा बेटा जब मीटिंग फिनिश हो जाये तो तसल्ली से खा लेना। उधर फिर बेड गंदा हो जाएगा। तो मोली ने कहा “तो ठीक है मैं ५-१० मिनट में आती हूँ”। अब पाँच दस मिनट तो दूर वो ठीक दो मिनट में आ कर डाइनिंग टेबल पर जम गई। मीनू जी आटे में घी दूध का मोयन डालके ऐसे बढ़िया पराँठे बनाती थीं की सात मोहल्लों तक ख़ुशबू उड़ती थी। मोली ने प्लेट में पनीर के सब्ज़ी, हरी चटनी, सोंठ के साथ चार मेथी आलू के पराँठे रख के ख़ाना शुरू कर दिया। सामने मंदिर की शेल्फ के पास पूजा करते मीनू जी के पति अमित जी उनकी तरफ़ देखा। पसीने में बेहाल मीनू जी ने इशारा किया की वो लगातार बना रही हैं, फ़िकर ना करें। दिल ही दिल में हंस भी दीं क्योंकि अमित जी को जान से ज़्यादा प्यारे थे पहली पाँत के सिके कुरकुरे पराँठे। जिन पर अब बहुरानी शान और अधिकार से हाथ साफ़ कर रही थी। मीनूजी को लगा था की ये एक एक करके लेगी। तो तब तक ये भी आके नाश्ता शुरू कर लेंगे। इतनी ही देर में बेटा मोहित भी आ बैठा टेबल पर। थोड़ी ही देर में मीनू जी ने काम वाली को इशारा किया पराँठा बनाने को। वो भी नाश्ता करने लगीं। बोलीं “मोली ला बेटा अपनी मम्मी से बात कराना। वो सोचेंगी की मैं बात नहीं करती।”। मौली ने टिश्यु से हाथ पौंछ कर कहा “हाँ मुझे भी बात करनी ही थी, चलो साथ में बात करते हैं। मम्मी भी सोचेंगी की दो दिन हो गये मैंने कॉल क्यों नहीं किया”। कनखियों से उसने अमित जी और पति मोहित की तरफ़ देखा। दोनों पुरुष गर्व से मोली को देखने लगे की कितनी बढ़िया बात है। अमित जी ने मीनूजी को घूरा की देखो बिचारी माँ को फ़ोन तक नहीं करती। मीनूजी दिल में घुट कर रह गईं। अब क्या कहतीं की झूठ की बड़ी सी पुड़िया है ये। बहू ने मोबाईल की तरफ़ हाथ बढ़ाया ही था की मोबाईल घनघनाने लगा। “लो ये तो मेरी मम्मी का ही है”। वो खिलखिला के हंस दी। स्पीकर पर मोबाईल ऑन करके वो बोलने ही वाली थी।उधर से चिल्लाती हुई आवाज़ आई मोली की माँ मंजुला जी की – “कर लिया नाश्ता? क्या बनाया था तेरी सास ने? बता तो नहीं दिया की आज छुट्टी है? कमरे में बैठी रह। मैं बाज़ार जा रही हूँ तो वीडियो काल कर लूँगी।फिर तू बताना की कौन से जूते लूँ, मैं बीस हज़ार से कम का नहीं लूँगी, तेरा इतना भारी प्रोमोशन हुआ है। मज़ाक़ बात है? मोहित को मत बताना अभी तीन चार महीने”। अमित जी, मोहित तो जैसे जड़ हो गये, मोली का चेहरा शर्म और ग़ुस्से से तमतमा रहा था। उसने कहा “मम्मी कुछ भी बोलना शुरू कर देती हो, सब सुन रहे हैं। स्पीकर पर है मोबाईल मेरी सास बात करना चाहती हैं तुमसे”। अब मीनूजी को बहुत संतोष सा मिला, वो बोलीं “अरे आप बाज़ार गई हो तो रास्ते में से इसको भी पिक अप कर लो, ये तो सुबह से रूम में ही रहती है। इसी बहाने ये शॉपिंग कर आयेगी। मैंने कल इसको पाँच हज़ार दिये हैं बर्थडे गिफ्ट के, तो ये कुछ ख़रीद लेगी”। उधर से मोली की माँ ने हाँ या ना क्या कहा उनको कुछ पता नहीं। बहू ने ख़ाना पूरा खाया की नहीं, पति और बेटे ने नाश्ते में और पराँठे बनवाये की नहीं। पर मीनूजी ने एक ही पल में बहु का झूठ उसकी माँ को बता के जो तसल्ली महसूस की वो अतुलनीय थी। एक साल से जितना काम उनकी बहू अपने वर्क फ्रॉम होम के नाम से करवा रही थी, जितना दुर्व्यवहार उनके पति और बेटा बहू की मोटी सेलरी के नाम पर उनके साथ कर रहे थे कि उसको का होता है वो सब आज एक पल में आँधी की तरह उड़ गया था। वो बाथरूम से सुन रही थीं की बेटा काम वाली से पैसे बढ़ाने कि बात कर रहा था कि आप ही ख़ाना बनाना शुरू कर दो। मम्मी को आराम रहेगा। पति जो इसी बात पर क्लेश शुरू कर देते थे की नहीं तुम ही बनाओ, भी अब भीगी बिल्ली की तरह हाँ में हाँ मिला रहे थे। *कृपया कॉपी पेस्ट करके किसी और ग्रुप में पोस्ट ना करें। ये मैं अपनी वेबसाइट पर पोस्ट कर चुकी हूँ तो प्लेग्रिज्म का केस भी सकता है आप पर। 🙏🏻😆