बिना बात गाँधी जी को उल्टा सीधा ना कहें।

हम हैं आज के मोबाईल धारी इंडियंस। ख़ुद अपने लिए या फिर अपने पूरे शहर के लिये नगर पालिका से एक कचरे का डिब्बा नहीं माँग सकते। एक फ्री का ईमेल नहीं लिख सकते की हमको हमारे दरवाज़े पर एक बड़ा सा कूड़े का डिब्बा दो और उसको समय पर उठवाओ भी।
पर हाँ फ्री टाईम में एक ऐसे दिग्गज वकील गांधी जी को गाली देके अपना मन बहला सकते हैं जो भीषण गर्मी में जब चंपारन पहुँच कर नीलदार की दशा के लिये आवाज़ उठाने की शुरूआत कर ही रहा था की उसपर बिना बात के १६-१७ मुक़दमे लगा दिये गये। इस बात से शुब्ध होकर उन्होंने अपने सारे मैडल अंग्रेजों को लौटा दिये थे। २००-३०० किलोमीटर की डांडी यात्रा करना भी कोई हंसी खेल नहीं था। ऊपर से कांग्रेस का अधिवेशन भी शुरू हुआ था और सरदार पटेल को सिर्फ़ दो लाइंस बोलने पर जेल भेज दिया गया था।
गांधी जी को अपशब्द बोलने से पहले के सहयोगी महादेव भाई देसाई और हरि भाई के बारे में ही पढ़ लीजिए कभी। बड़ी ही हैरानी होती है की चार चार अख़बारों के संपादन के साथ साथ साबरमती आश्रम का निर्माण, अंग्रेज सरकार के साथ ख़तो किताबत, फ़िरोज़ गांधी के घर की विशाल लाइब्रेरी की सूचियाँ बनाना, कितनी ही बंगाली किताबों का अनुवाद, रोज़ मिलने आने वालों की अपॉइंटमेंट, संपादकों से बापू का इंटरव्यू लिख कर फ़ाइनल ड्राफ्ट बनाना, गांधी जी के खाने पीने का ध्यान रखना, ये कोई आसान बात नहीं थी।
जालियाँवाला बाग कांड के विरोध में जब गांधी जी को गिरफ़्तार किया गया तो उनके गुरु (बड़ौदा हाईकोर्ट के जज) अब्बास तैयब जी के साथ रोज़ के २०-३० पत्र संवाद बनाये रखने के लिए कोई आसान बात नहीं है रहा होगा। हम कितनी आसानी से वकीलों की बड़ी पाँत को भला बुरा बोल देते हैं सोशल मीडिया पर जिनकी वजह से हमें आज़ादी मिली थी। अंग्रेजों से लोहा लेना उस बड़ी आबादी के लिये हंसी खेल नहीं था जोकि बिलकुल पढ़े लिखे ही नहीं थे या फिर ज़्यादातर पढ़ेलिखे तो सरकारी नौकरी के लिये लालायित रहते थे।
जो व्यक्ति सिर्फ़ दो जोड़ी कपड़े और एक नन्ही सी डिब्बी में चने मूँगफली लेकर चंपारण पहुँच कर भारत का सबसे पहला संगठित सत्याग्रह शुरू करने के लिए अकेला पहुँचा हो और यहाँ तक की क्रूर अंग्रेज़ी पुलिस से भी ना डरा हो, उसके लिए दिल में अपार सम्मान होना ही चाहिए।
चित्र –
१- अब्बास तैयब्जी
२- महादेव भाई देसाई
३- निर्मल कुमार बोस
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गांधी
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