संध्या समय था, महात्मा बुद्ध अपने शिष्यों के साथ एक नगर में प्रवेश कर रहे थे.यह नगर नालंदा विष्वविद्यालय से सटा हुआ था तो नागरिक बड़े ही सुशिक्षित माने जाते थे. नगर द्वार के पास ही जो घर था उसका द्वार खटखटाने पर गृहस्थ महिला ने बाहर आके कहा की मैं भिक्षा उसी को देती हूँ जो मेरे प्रश्न का उत्तर देता है.
महात्मा बुद्ध ने हँसके उस महिला से प्रश्न पूछने को कहा. महिला ने पूछा की सारी प्राणी जातियों में मानव बड़ा या जंतु? और अगर मानव बड़ा तो क्यों परंतु अगर जंतु बड़ा तो उत्तर सिद्ध करके बताओ. तभी भिक्षा मिलेगी.
महात्मा बुद्ध ने कहा “जंतु बड़ा होता है, मानव छोटा होता है” और यह सिद्ध करने को चार दिन लगेंगे. हम जब चार दिन बाद इस नगर से जायेंगे तो आपसे मिलके और आपसे भिक्षा लेके जायेंगे.
महात्मा बुद्ध ने उसके कान में कुछ कहा और अपने शिष्यों के साथ बिना भिक्षा लिए आगे बढ़ गए. उनको शिष्यों को बहुत बुरा लगा परंतु वो सब चुप रहे.
चार दिन बाद जब वो सब वापस नगर से बाहर चले तो फिर उस घर तक पहुंचे और द्वार खटखटाया. इतने में एक कुत्ता बहुत जोर जोर से उन सब को भौंकने लगा. उस घर की गृहस्थन बाहर आके बोली “आपने जैसा कहा वैसा ही किया मैंने”. अपने रिश्तेदार को घी में चुपड़ के रोटियां खिलायीं तीन दिन और वैसी ही रोटी कुत्ते को भी दी. परंतु चौथे दिन मैंने रोटी में मिर्ची डाल के दी तो मेरे रिश्तेदार मुझे बहुत भला बुरा कहा.
महात्मा बुद्ध ने पूछा “कुत्ते का व्यवहार कैसा था?” तो उस स्त्री ने कहा “कुत्ता क्या कहेगा?” वो तो अब इतना वफादार हो चला है की हमारे घर के दरवाज़े तक आते ही हर अनजान को भौंकता है. यही तो है वो कुत्ता. कहकर उसने अनजान कुत्ते की तरफ इशारा किया.
महात्मा बुद्ध हंस के बोले “आपने तीन दिन घी में चुपड़ के रोटी खिलाई परंतु तीसरे दिन मिर्ची की रोटी खाते ही आपका मानव रिश्तेदार आपको भला बुरा कहने लगा परंतु ये कुत्ता फिर भी आपके साथ है”.आपको अब भी पता नहीं चला की पूरे जगत की प्राणी जाती में कौन बड़ा है स्वाभाव और हृदय से?
वो महिला महात्मा बुद्ध के चरणों में गिर के रोने लगी. महात्मा बुद्ध ने उससे भिक्षा ली और आगे चल दिए.