उनकी हाय लगती है! September 6, 2023 अनकही पर समझी हुई बातें!ये कहानी कोई धार्मिक या जातिगत भेदभाव की नहीं है। बस जन्मजात संस्कारों की है। आदमी पैसे से नहीं अपनी परवरिश से जाना जाता है। उसके पीछे से जो मूल भाव चले आ रहे है, दिख ही जाते हैं। वैसे तो हर मानस पटल की अपनी छाप अलग होती है उसके स्वभाव पर निर्भर करती है।अभी मेडिकल क़ालिज़ के डिपार्टमेंट के बाहर पहुँचा ही था की सामने से डाक्टर इक़बाल आ गये। बड़े ही ग़मगीन से गुमसुम, पास आकर फुसफुसाने लगे, बोले “सलाम वालेकुम डाकटर साब, सब ख़ैरियत?, सुना आपने कल रात नवीन साब पूरे हो लिए”!“क्या? अरे बड़े दुख की बात है”! मैंने हैरानी और अफ़सोस में चौंक कर सिर हिलाया।“अरे मैं कल शाम ही उनसे मिला था, मेरी गोल्फ कार्ट वो ले गये थे, तो उन्हें वापस लेने गया था, वो डाक्टर सतेंद्र जी भी थे वहीं पर, तो मैं बस हाथों हाथ वापस हो लिया था अपना सामान लेके, बस कोई एक घंटे बाद वो जन्नतनशीन हो लिये”। बहुत दुख के साथ डाक्टर इक़बाल ने पूरी बात बताई।उनसे थोड़ी देर बात करके हमने तय किया की मेडिकल क़ालिज़ से फ़ारिग हो कर हम दोनों मातमपुर्सी के लिये उनके घर शाम को जाएँगे। डाक्टर इक़बाल तो खैर मौसेरे समधी भी लगते थे नवीन साहब के तो उनको तो वैसे भी जाना ही होगा, दिल में हिसाब लगाया। चौंके क्या आप? असल में डाक्टर इक़बाल की साली डाक्टर निलोफर और उनके पति डाक्टर फ़ाज़िल सऊदी अरब में डाक्टर हैं उनके बेटे ताबिश की शादी नवीन साब की बेटी सलोनी से हुई है। वो और ताबिश साथ ही लंदन की लुबोरो यूनिवर्सिटी से स्पोर्ट्स मैनेजमेंट की पढ़ाई करके ऑस्ट्रेलिया में जॉब के लिये गये थे। अब सलोनी की शादी में करोड़ों का दहेज माँगा जा रहा था क्योंकि वो सांवली है तो तंग आकर बेटी कि मर्ज़ी से उसकी शादी ताबिश से हो गई। अब जितने रिश्तेदारों तो कुछ कहना सुनना था वो सब अपनी मारवाड़ी मान मर्यादा भूल के इसीलिए चुप रहे क्योंकि सबको पता था की नवीन साहेब की ज़मींदारी से आने वाले बढ़िया दशहरी लंगड़े और चौंसा आमों की पेटियाँ आनी बंद हो जायेंगी या फिर जाड़ों में मिक्स वेजिटेबल अचारों की बरनियाँ भी ना मिलेंगी। फिर सोने की चेन, चाँदी के कटोरदान में भरे दो किलो काजू की कतली के साथ गये ब्याह की इन्फ़ॉर्मेशन कार्ड ने सबके मुँह पर ताले जड़ ही दिए थे। सबको पता था कि दो बार दहेज के चक्कर में सलोनी की सगाई टूटी।अपनी पीडब्ल्यूडी की बादशाही चीफ़ इंजीनियरिंग के पद पर रहने में प्रदेश के ऊँचे नेताओं और अफ़सरों को भर भर के रिश्वत देके नवीन बाबू को असल में सबका मुँह बंद करना खूब अच्छे से आता था। ये गुण तो उनको अपने बाप दादाओं की ज़मींदारी के साथ जैसे विरासत में मिला था। बहुत दिलदार आदमी थे।और लोग उनकी इस आदत का फ़ायदा भी खूब उठाते थे। पर शायद उपरवाले ने उनको और उनके बच्चों को इसीलिए खूब खुश रखा भी है।ख़ैर, जब तक ओपीडी में पहुँचा तब तक तीस चालीस पेशेंट लाइन में लगे दिख रहे थे। जल्दी से मास्क लगा के, स्टेथोस्कोप गले में लगा के, हाथ सैनिटाइज़ करके, नंबर से मरीजों को बुलवाना शुरू कर दिया, क़रीब १०-१२ पेशेंट देखने के बाद अपने नये असिस्टेंट मुदित को साथ लेकर जनरल वार्ड की तरफ़ चल दिया तो रास्ते में हंसते मुस्कुराते डाक्टर सतेंद्र अग्रवाल दिख गये। बोले”क्या हाल चाल हैं? आप तो सुबह ही काम में लग गये?” बड़ी हैरानी हुई मुझे। मैंने कहा “आपको पता नहीं चला नवीन बाबू का? ” अब मेरी बात सुनकर उनकी हंसी थोड़ी कम हुई पर बरकरार सी ही रही, बोले”हाँ कल रात ही पता चल गया था, मैं जब तक यहाँ आया था उनका सुनकर, तो पता चला कि उनके अंदर पल्स नहीं थी, रिवाइवल नहीं हुआ, मैसिव हार्ट अटैक था।” मुझे अब ये नई बात पता चली पर मैं चुपचाप सुनता रहा। सोचा कि पूछूँ की आप तो शाम को उनके साथ ही थे ना? पर वो ख़ुद ही बोले। “कल शाम को तो मैं उनके घर गया था क्योंकि मेरी भतीजी की शादी जिस लड़के से हो रही है वो उनके मुसल्ले दामाद के ही अंदर में ही सेम ब्रांड स्पोर्टिंग एजेंसी में काम करता है तो उसकी कोई रिक्वेस्ट थी। पर डाक्टर साब उनका तो शाम की चाय देख कर मेरी आँखें फट गईं थीं”। मेरा खून उबलने लगा, सोचा आगे चल देता हूँ पर मेरे कानों में डाक्टर सत्येंद्र की कर्कश काकभुशुण्डी जैसे बोल गूंजने लगे, वो निर्विवाद बोलने लगे, केसर इलाची अदरक दालचीनी की चाय भरी केतली, साथ में मछली के पकौड़े, आलू के चिप्स, पाइनएप्ल पेस्ट्री, मटन के शामी कबाब, आलू के फ़्राई और साब साथ चौंसा आम डकार रहे थे। इस पर मुदित बोल पड़ा “इसमें कौन सी बड़ी बात है सर? वो तो कभी कभी सात आठ तरीक़े के नाश्ते जैसे समोसे मठरी इमरती कचौड़ी बालुशाही ढोकला बर्फ़ी रसगुल्ले की प्लेटें सजवा के हमारे स्टाफ़ क्वाटर में भी भिजवा दिया करते थे, मैं वहीं उनके बंगले में रह कर पढ़ा हूँ। मेरा भाई उनकी स्टेट के ऑफिस में ही तो काम करता है। क़रीब सात स्टाफ़ क्वाटर हैं पीछे। उनका शेफ धोबी घर के नौकर भी वहीं रहते हैं। अब तो एसी भी लगवा दिये हैं सबके घरों में कोई तीन साल पहले। बड़े भले आदमी थे, मुदित का गला रूँध गया। उसके चेहरे पर शोक साफ़ नज़र आ रहा था।डाक्टर सतेंद्र का मुँह जैसे कड़वा हो गया हो। वो बाय शाय करके आगे निकल लिए। हम दोनों चुपचाप जनरल वार्ड में भर्ती लोगों की जाँच में लग गये। चुप और व्यथित थे। और जानते थे कि नवीन बाबू कितने नेक इंसान थे। लौट के आते समय मुदित ने कहा मुझसे “डाक्टर साब! मैं आपको राय दूँ? आप बुरा तो नहीं मानेंगे?” मैंने कहा “कहो भाई, तुम तो बेटे समान हो!” मुदित ने बहुत सादगी और शालीनता से कहा “आप प्लीज़ ये सतेंद्र जी को अपने घर ना बुलाया कीजिए। इनकी बहुत हाय लगती है, ये बहुत किलसते हैं सबको देख कर। उस दिन मेरी नई बाईक को देख कर उल्टा सीधा बोल दिया, मुझे बाद में पता चला और आज तक मेरी बाईक ख़राब पड़ी है, एजेंसी वाले अगले हफ़्ते देंगे।और उस दिन आपकी पत्नी को देख कर बोले की वो कितना महँगा मेकअप करती हैं और ठसके से चलती हैं तो उनका पैर टूट गया शाम को ही”। मुझको मुदित की बातें सुनकर कोई हैरानी नहीं हुई। क्योंकि मेरी माता जी अक्सर ही कहती हैं कि दोस्ती बराबरी वालों में करनी चाहिए और उठना बैठना भी। और वो ये भी कहती हैं की ख़ाना पीना सबके सामने नहीं करते पता नहीं सामने वाले की क्या नियत हो?पर चलो आजकल ये बातें मानता ही कौन है? मैं वापस आकर ओपीडी के पेशेंट देखने लगा। वैसे लगभग सबको ही पता है बल्कि सत्येंद्र जी ने गा रखा है की वो बहुत मेहनत से फाके करके डाक्टर बने हैं। और जब वो किसी के बच्चे को महँगे जूते कपड़े पहने देखते हैं तो पीछे से बहुत गालियाँ देते हैं की देखो साला अपनी औलाद को बिगाड़ रहा है। पर क्या करें लोग भी अब जानते हैं की वो अपने बचपन की फ़्रस्ट्रेशन निकाल रहे हैं।तो आज मैंने तय कर लिया कि अब इनसे ज़्यादा पारिवारिक मेल जोल नहीं रखूँगा। क्या पता कल को मुझको देख कर ही कुछ अपशब्द बोल दें।अपना खाने का डिब्बा उठाकर अलमारी मे रख दिया। आज से इनके साथ ख़ाना ख़ाना भी बंद। मुदित को भी अच्छे से सब समझा दिया। वो सँभाल लेगा। Share this:Click to share on Twitter (Opens in new window)Click to share on Facebook (Opens in new window) Related