त्यागी के फल फ़्रूट और बीवी!

“ओम! सुनो! कोई अच्छा काम
वाला हो तो बताना प्लीज़, नदीम तो बांग्लादेश जा रहा है एक साल के लिए।”। मैंने अपने नेपाली प्लंबर्वकों फ़ोन करके अनुरोध किया। बल्कि एक तरीक़े से गिड़गिड़ाया। “क्यों इतना लांबा टाईम को क्यों जा रहा है?” अब ओम ने इनक्वायरी शुरू कर दी। “शायद उसको घर बनवाना है”। लंबी साँस भर के मैंने ओम को बताया।

पति लन्दन में रहते थे प्रोजेक्ट के सिलसिले में और मैं यहाँ दुबई के घर में अकेली तीनों बच्चों से जूझती लार टपका के अपने भारत के रिश्तेदारों से उनकी काम वाली बाई के सुख सुनकर बहुत दुखी रहती थी ऊपर से नदीम ने कहा की वो बांग्लादेश से एक साल बाद लौट कर आएगा। आसमान हिल गया और धरती खिसक गई मेरे लिए। कई जगह फ़ोन घनघना दिये। कितनी मिन्नतें किट्टी पार्टी वाली सहेलियों से कर डाली।

कई बार दोहा की याद आती, वहाँ के हाउस बॉय अब्दुल की याद आती। मन ही मन पछतावा होता की बेकार दुबई शिफ्ट हुए। हर चीज़ इतनी महँगी ऊपर से आये दिन रिश्तेदार आते रहते। अब ये काम वाले नदीम के बांग्लादेश जाने का लफड़ा।

ख़ैर क़िस्मत थोड़ी से बुलंद निकली। ओम ने बोला की वो किसी थागी को लेकर आयेगा जो ऊपी का रहने वाला है। हो सकता है कि अफ़्रीका की कोई कंट्री हो। थागी तो अफ़्रीकन नाम होता है।

अब आये थागी अगले दिन ओम के साथ। अब ये भाई साब तो शाहजहांपुर यूपी वाले त्यागी निकले। हे राम! मन में सोचा बामन से चौका बर्तन धुलवाया जाएगा? पर त्यागी ने कहा की कौन देख रहा परदेस में? वो किसी होटल में काम करता था। पत्नी ब्यूटीशियन थी घर के पास किसी गाँव में। काम सही से करने लगा और कभी कभी व्रत त्योहार का भी बताने लगा। मन को भी सुकून हुआ की चलो सही वक्त पर सही बंदा मिल गया। नियत समय पर आकर सारा चौका बर्तन साफ़ करके रसोई साफ़ करता, पूरे घर में वेक्यूम करके डेटोल से पोछा लगाने के बाद अगरबत्ती भी जला देता। तो थोड़ा मन को भाने लगा।

उसको करते एक दो महीना हुआ ही था कि तीन चार बातें एक के बाद एक हुईं। मेरी किट्टी पार्टी होने वाली थी तो मैं बच्चों से मीठे के लिए ट्रैफ़ल या फ़्रूट क्रीम क्या बनाऊँ ये डिस्कस कर रही थी। त्यागी ने मुझे एक बहुत अच्छी रेसिपी बताई की क्यों ना मैं चाकलेट पेस्ट्री में फ़्रूट्स और कस्टर्ड बनाके डाल दूँ। तो बढ़िया हो जाएगा। मैंने कहा कि मीठे फ़्रूट्स छाँटना नहीं आता मुझको। तो उसने कहा की वो ला देगा। अगले दिन उसने मुझको अंगुली बड़े जीतने लंबे हरे अंगूर, तरबूज़, लाल रंग की बेहद मुलायम नाशपातियाँ, स्ट्रॉबेरी, चेरी, ब्लू बेरी से भरा एक २-३ किलो का डिब्बा ला दिया। मैंने जब चखे तो सारे फल शानदार तरीक़े के मीठे निकाले। मैंने एक अंदाज़े से उसको क़रीब सौ दिरहम पकड़ाये जो उसने पहले मना किया फिर ले लिए।

किट्टी पार्टी में ट्रैफ़ल को सबने बहुत पसंद किया और एक पाकिस्तानी सहेली ने थोड़ी आँख सिकोड़ के पूछा की मेरे यहाँ सफ़ाई वागेरह कौन करता है? तो वो बात दूसरी सहेलियों से हंसने में थोड़ी टल सी गई। पर मुझे कुछ अजीब सा तो लगा। याद रहा मुझे उनका आँखें सिकोड़ के पूछना।

अब एक सिलसिला सा चल निकला की हमको घर बैठे ही बेहद २-३-४ किलो शानदार फल सिर्फ़ सौ दिरहम में मिलने लगे। उधर एक दिन हमारे घर काम करते हुए त्यागी को उसके घर से फ़ोन आया तो उसने मुझसे पूछ के वीडियो काल रिसीव किया। उसकी पत्नी रजनी बिलकुल हीरोइन की तरह सज धज के काल कर रही थी। वो काफ़ी चिंतित थी कि कॉल क्यों नहीं लग रहा है। उसने मुझसे मेरा नंबर ले लिया। कभी इमरजेंसी हो तो। मुझे वो भली सी लगी पर मेरा अपना नंबर उसको देना त्यागी को थोड़ा सही नहीं लगा था शायद । पर वो चुप ही रहा।

कोई पाँच छह दिन बाद त्यागी जब काम करके चला गया तो उसकी पत्नी रजनी का फ़ोन आया कि त्यागी फ़ोन नहीं उठा रहा है। तो मैंने उसको कहा की उसकी कार में एसी काम नहीं कर रहा है तो वो वर्कशॉप में रिपेयर कराटे हुए घर जायेगा। तुम कोई दो घंटे बाद बात करना। उसने बड़े प्यार से कहा की मैं त्यागी को ना बताऊँ की उसने काल किया था। पीछे से किसी के चिल्लाने की आवाज़ आई तो उसने फ़ोन यह कहकर काट दिया की त्यागी की माँ यानी उसकी सास गालियाँ दे रही हैं। मुझे बड़ी हमदर्दी सी हुई कि पति इतनी दूर मेहनत कर रहा है बिचारी सास की सेवा कर रही है।

उसके बाद रजनी का फ़ोन आने लगा कभी कभी। उसके मुताबिक़ वो त्यागी की माँ बहनों के बीच पीस रही है। त्यागी सारा पैसा अपनी बहनों की शादी के लिए इकट्ठा कर रहा है। उसको कोई पैसा नहीं भेजता है। तो ये सुनकर मुझे बहुत ही ज़्यादा बुरा लगा पर तरस भी आया। फिर एक बार उसने मुझे रिक्वेस्ट की इस बात के लिए की मैं त्यागी को समझाऊँ की सारा पैसा पत्नी के नाम से भेज दिया करो। ताकि कोई उसे तंग ना कर पाये। मुझको बात समझ आ गई। बिचारी कब तक दबेगी?

त्यागी हमारे घर हफ़्ते में तीन बार आता था। क़रीब तीन चार घंटों में सारा घर साफ़ करके कपड़े धोके सूखा के जाता था। इस तरह से वो कोई छह घरों में मेहनत करता था। हर घर से उसको आठ सौ दिरहम यानी की क़रीब सोलह हज़ार रुपए मिलते थे। तो छियानवे हज़ार तो मिल जाते थे और नौकरी के पचपन सौ यानी की एक लाख दस हज़ार थे ही। तो क़रीब दो सवा दो लाख भारतीय रुपये कम तो नहीं होते।

पति देव को बताया तो उन्होंने उल्टा मुझको डाँटा की क्यों उसकी बीवी से बतियाती हो। (हसबैंड सही होते हैं ये बीवियों ही बिना बात इमोशनल हो जाती हैं)। हमारे घर का एक टेप टपक रहा था तो मैंने ओम प्लंबर को बुलाया। उसने कहा कि वो दो तीन घंटे में आयेगा। ख़ैर इनसे डाँट खाने के बाद मूड ऑफ था तो चुप करके टीवी देखने बैठ गई। ओम कोई एक घंटे बाद ही आ गया। उसके साथ उसका छोटा भाई कमल भी आया। दोनों नल को खोलके चेक करने लगे। ओम ने अपने भाई को नया टेप लाने को कहा।

मैं ओम से बात करने लगी। उसको थोड़े से फल काट के दिये। उसने अजीब तरीक़े से मुझको देखा और पूछा। मेम शाब ये फ़्रूट वो थागी लाया है? मैंने पानी पीते हुए हाँ में सिर हिलाया। वो बोला “फ्री में लाया की पैशा (पैसा)दिया आप”? तो मैंने बताया की वो ले नहीं रहा था तो मैंने ज़बरदस्ती दिये उसको। ओम ने सिर नीचा करके निराशा से हिलाया। मैंने पूछा की क्या हुआ? तो वो बोला नहीं कुछ। फिर मैंने दिल में कुछ याद करके कहा “वो एक पाकिस्तानी सहेली भी पूछ रही थी की आपके यहाँ कौन काम करता है? ओम ने मुझे आँखें सिकोड़ के पूछा “किधर रहता है वो मैडम”? तो मैंने बताया की दिएरा सीटी सेंटर के सामने जो अल ख़लीज़ बिल्डिंग है उसमे सत्रहवीं मंज़िल पर रहती हैं। तो ओम बोला “मैं जानता हूँ मेमशाब, ये थागी उधर ही काम करता था पहले”। अब मैं चुप और दिल में धक धक शुरू हो गई। ओम ने बताया की थागी (सौरी त्यागी) किसी होटल में शेफ़ का काम करता है और वहाँ से फल निकाल के अपने काम वाले घरों में बेचता है। इस चक्कर में ये दो तीन होटलों में जॉब चेंज कर चुका है या निकाला भी जा चुका है। ओह तो हम चोरी के फल खा रहे हैं? मैंने कहा। तो ओम एक फीकी हंसी हंस दिया। बोला “मैडम हम नेपाली लोग चोरी का बिलकुल खाते नहीं है, पर कोई कोई हमारे यहाँ भी चोर निकल आता है, आप तो ख़ैर इसको पैसे देती हैं तो चोरी के कहाँ से हुए?”। अभी बात हो ही रही थी कि ओम का भाई कमल नया नल लेके आ गया। दोनों जन नल ठीक करने में जुट गये और क़रीब दस पंद्रह मिनट में काम निपटा कर वापस जाने लगे। मैंने ओम
को कहा कि मैंने तो अब त्यागी से काम नहीं करवा पाऊँगी तुम किसी और को भेजना। इसकी बीवी का ख़ायक नहीं होता तो मैं हाथ की हाथ इसको निकाल देती।अब ओम और कमल दोनों ज़ोर से हंस पड़े। जैसे मैंने कोई जोक सुनाया हो। कमल बोला “मैडम थागी की माँ तो अपाहिज गूँगी बहरी है। एक बहन वहीं किसी सरकारी स्कूल में टीचर है उसका पति बैंक में किलर्क (क्लर्क) का काम करता है। उसकी बीवी की चार बहने हैं वो सब काम वालों के यहाँ फ़ोन करके थागी को जोर दिलवाती है कि मुझको पैसा भेजा कर। आप उसके चक्कर में मत आना। थागी को फलों की चोरी भी उसी ने सिखाई है। वो सारा पैसा अपने मायके में उड़ा देती है। कहकर दोनों जन दरवाज़े से बाहर चले गये।

मैंने सोच लिया कि मैं अब त्यागी से फल कभी नहीं ख़रीदूँगी। उसकी बीवी का नम्बर ब्लॉक भी कर दिया। हमारे पूर्वज सही कहते थे की कामवालों से ज़्यादा याराना दोस्ताना सही नहीं होता। अब से थागी सौरी त्यागी से फ़ालतू बातें बिलकुल बंद। काम कर और जा वापस!






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