हमारी आज़ादी के उच्च शिक्षित अगुआ नेता, दाँडी यात्रा और मधुकर उपाध्याय।

हिंदी भाषा के अपने छात्रों को गाँधी जी की यात्रा के बारे में पढ़ाते हुए कई बार मुझे अपने रोंगटे खड़े होते महसूस होते हैं। क़रीब पचास हज़ार लोगों का जनसैलाब, अँधेरी रात में माही नदी को पार करते हुए और हज़ारों गाँव वाले हाथों में दिए लिए हुए उन आज़ादी के मतवालों को रास्ता दिखाते हुए जो सरदार पटेल जी की एक पुकार पर नमक का क़ानून तोड़ने के लिए चले आए थे। दाँडी यात्रा को सरदार पटेल शुरू करने वाले थे पर अचानक निषेधाज्ञा शुरू होने पर उनको जेल जाना पड़ा.

क्या समय रहा होगा? कितने साफ़ दिल की भीड़ रही होगी, ऊपर से गाँधी जी की ज़िद की पैदल ही चल के ये ४०० किलोमीटर की यात्रा पूरी  करूँगा क्यूँकि यह तो धर्म यात्रा है. मधुकर उपाध्याय जी ने जब इस विषय पर लेख लिखने की सोची तो उन्होंने सोचा कि क्यूँ ना मैं खुद दाँडी यात्रा करके उस ऐतिहासिक यात्रा को महसूस करूँ फिर उसके बाद ये लेख लिखूँ? इस तरह से खुद एक बेहद लम्बी यात्रा करके मधुकर उपाध्याय जी ने एक बेमिसाल रचना लिख डाली – “दिए जल उठे”. जिसको सालों से कक्षा नौ (सीबीएससी)केबच्चे पढ़ते चले आ रहे हैं। स्वाधीनता संग्राम की विशेष बात यह भी रही शायद की हमारे प्रमुख अगुआ नेता बहुत कुलीन घरानों के थेऔर विदेशों में बेहद मेहनत से वकालत सरीखी ऊँची डिग्रीयाँ हासिल करके आए थे। वरना इन ब्रितानी हुक्मरानों में से कोई भी किसी भी स्थानीय नेता के दबाव में दबने वाला नहीं था। इन अंग्रेज़ो के सामने उच्च स्तरीय व उच्च वर्गीय नेताओं की एक ऐसी मज़बूत पंक्ति खड़ी हो गई थी जो ना दबने वाली ना पीछे हटने वाली थी। हमारी आज़ादी उन मेहनती नेताओं की बदौलत आयी थी जिन्होंने महीनों लम्बी पानी के जहाज़ों वालीयात्राएँ करके एक मुक़ाम हासिल किया था और हमारे पूर्वजों ने ऐसे ऐसे मेधावी नेता चुने थे और उनको आज़ादी के आंदोलन कीबागडोर सौंपी थी। उस बेहद उच्च शिक्षित वर्ग के संस्कारी नेताओं के तारीफ़ ऐ काबिल जज़्बे को सलाम जिसकी बदौलत हमको हमारे स्वतंत्र  देश में साँस लेते हुए पैदा होने का सम्मान मिला. जय हिंद जय भारत। 

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