भारत दर्शन, हिन्दी भाषा और अंग्रेज़ी भाषा सीखने की सार्थकता।

अभी कुछ देर पहले अपने छात्रों को एक श्रुतलेख देते हुए मैंने एक हिंदी के गाइड से एक अनुच्छेद पढ़ा। उसमें एक महाशय हिन्दी भाषीयों के  ज़्यादा हिन्दी लेखकों की किताबें ना ख़रीद कर पढ़ने की आदत पर अपनी कुंठा से परिपूर्ण भड़ास निकाल रहे थे। यहाँ तक कि उन्होंने हिंदी के लेखकों की दुर्दशा को म्यांमार और इंडोनेशिया से भी नीचे का बता दिया। बहुत हैरानी सी हुई की बच्चों को हिन्दी की गाइड्स के  द्वारा क्या क्या सिखाया जा रहा है। जबकि हक़ीक़त कितनी ज़्यादा अलग है। आप ऑनलाईन किंडल एडिशन पर मुंशी प्रेमचंद जी के उपन्यास ख़रीद कर आराम से पढ़ सकते हैं। नित नए लेखक उभर कर सामने आ ही रहे हैं और लगातार अपने बेहतरीन लेख निजी ब्लॉग के माध्यम से खूब प्रकाशित कर रहे हैं। जितने पुराने लेखक या फिर नए लेखक नए ज़माने के हिसाब से खुद को ढाल रहे हैं उन तक युवा या मध्यम उम्र के पाठक आराम से पहुँच रहे हैं।

रही बात अंग्रेज़ी भाषा को ज़्यादा महत्व देने की तो वसुधैव कुटुम्बकम के इस ग्लोबलायिजड दुनिया में अगर सिर्फ़ हिन्दी भाषा को ही महत्व  देने से कैसे काम चलेगा? अब तो युवा वर्ग का एक पैर भारत में तो एक पैर विदेशी कंपनीयों के काम काज या फिर सैर सपाटे में ही गुजरता है। अगर पूरे विश्व की सिर्फ़ एक भाषा हो जाए अंग्रेज़ी तो बुराई ही क्या है? अब अगर आप तुर्की की यात्रा पर गए और इस्तांबुल में चौराहे पर खड़े होके कुछखाने के लिए ढूँढ रहे हैं तो क्या सिर्फ़ हिन्दी भाषा से काम चल जाएगा? तो फिर आप सिर्फ़ अपने घर में हिन्दी में या कोई भी अन्य लोकल भाषा सीख कर कहीं जाइए ही नहीं। कुएँ के मेढक बन के बैठे रहिए। तो फिर अंग्रेज़ी को भला बुरा कहने से अच्छा है की उदारता से अंग्रेज़ी सीखी जाए और इस्तेमाल भी की जाए।साथ में अपनी भाषा को भी बराबर सम्मान दिया जाए। हिंदी दिवस का इंतेज़ार का करके रोज़मर्रा में अपनी खुद की भाषा को भी इस्तेमाल किया जाए।

बात सिर्फ़ लोकल भाषा के लिए वोकल होने की नहीं है। माता पिता लोगों को आजकल अपने बच्चों को पूरा देश या फिर चलो कुछ प्रमुखशहर भी ज़रूर ही दिखाने चाहिएँ। मेरी उड़ीसा, बंगलुरु, मुंबई, मैसूर और जम्मू कश्मीर देखने की बहुत इच्छा थी। पर कभी जा नहीं पाई।आज भी कसक उठती है। जब तक भारत में रही हमेशा व्यस्त ही रही, मुझको समय निकाल कर अपना देश घूम लेना चाहिए था। चलोअब कभी अपने जाऊँगी तो कुछ शहर घूमने ज़रूर जाऊँगी 

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