भारत की पुरातन शिक्षा पद्धति में मदरसों का योगदान।

पहले इतिहास तो उठा के देखो। मौर्य और गुप्त के बाद तो गझनवी और मुग़लों ने राज किया था। तो फ़ारसी और संस्कृत ही पढ़ते थे लोग। डाक्टर राजेंद्र प्रसाद बाबू जी जो की हमारे प्रथम राष्ट्रपति रहे हैं वो मदरसे में ही पढ़ने जाते थे। हमारे ससुर जी डाक्टर थे और सास भी। मदरसे से ही शुरुआत किए थे। फ़िरोज़ गांधी जी की बुआ डाक्टर शीरीन कमिस्ट्रेट उनकी सीनियर थीं मदरसे में। बाद में कमला नेहरू मेडिकल कालिज, इलाहाबाद में वो हमारे सास ससुर की सीनियर सर्जन बनी। यहाँ तक कि भावनगर के मदरसे में फ़िरोज़ गांधी के पिता फ़रदून और महात्मा गांधी के बड़े भाई लक्ष्मीदास जी के दोनों बेटे भी साथ ही एक मदरसे में ही पढ़ते थे। फ़रदून जहांगीर गांधी तो मर्चेंट नेवी इंजीनियर बनके निकल गये थे।
मुंशी प्रेमचंद हों या फिर डाक्टर गुरुदयाल सिंह जी। सबके स्कूल के हेडमास्टर ऑक्सफ़ोर्ड के पढ़े लिखे थे। अमीर घरों के बच्चे बहुत पढ़े लिखे होते थे और अपनी शिक्षा के बाद उनको १००० २००० की बढ़िया नौकरी अंग्रेज़ी सरकार में मिल ही जाती थी।
इंडिया में शिक्षा का प्रचार प्रसार तो मदरसों ने ही किया था। बिना जातिगत भेदभाव के सब पढ़ लेते थे। संस्कृत महाविद्यालयों या पाठशालाओं में सिर्फ़ उच्च जाति की ब्राह्मण ही जाते थे। ये बात तो ब्रिटिश जनरल कालिंज जोकि कोलकाता यूनिवर्सिटी में मुफ़्त में पढ़ाते थे उन्होंने भी अपने मेमोइर्स में लिखी है की भारतीय लोगों को उनका जातिवाद खाये जा रहा है और एक दूसरे के ही दुश्मन बने बैठ हैं ये लोग नहीं तो हम इन पर नहीं ये लोग हम पर राज कर रहे होते।

तख़्ती बुद्दके लिए एक ऐसी पीढ़ी इन मदरसों में शिक्षित होके आगे निकली जिन्होंने अंग्रेजों की नाक में नकेल कसकर उनको देश से बाहर खदेड़ के ही दम लिया।

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