Indian Reservation v/s media.

आरक्षण के दंगो से ग्रस्त देश के समाचार देख के यहाँ दूर देश में मन में बहुत दुविधा उत्त्पन होती है. बहुत क्लेश हो उठते हैं इन दलित समाज की राजनीति करने वाले चालु नेताओं की मानसिकता पर. जिस सरकारी सुबिधा को एक आंदोलन के जरिये इनको लात मार देनी चाहिए थी उसी आरक्षण की सुविधा को गले में मरे हुए सांप की तरह लटकाये लटकाये घूम रहे हैं. कैसा लगता होगा इन लोगों को विदेश यूनिवर्सिटिओं के बिना आरक्षण बिना जातिभेद के प्रवेश नियमों को देख कर?

चन्द्रगुप्त मौर्य के साम्राज्य विस्तार से कहीं पहले केरल राज्य के विदेशी व्यापार के झंडे गड़े हुए थे. कोई ६० साल पहले से वहां के लोग इतने दूरदर्शी थे की महिलाओं की उन्नति के बारे में उनकी शिक्षा के बारे में खासे सजग थे.आरक्षण की विडंबनाओं से दूर उन्होंने महिला शिक्षा के लिए ख़ास कदम उठाये थे.आज संसार के किसी भी कोने में आप चले जाईये एक न एक महिला नर्स या डॉक्टर केरल राज्य की जरूर मिल जाएगी. जब उत्तर भारतीय राज्य सती प्रथा (रूप कुंवर का अस्सी के दशक का भयावह किस्सा याद है?) या दहेज़ के स्टोवों से ग्रसित हो चला था तब केरल की महिलाएं दिल्ली के मंत्रालयों में स्टेनोग्राफर या एकाउंटेंट्स की नौकरी के लिए ताल ठोक रही थीं.

हमें जी हाँ हम भारतीयों को हर आगे बढ़ती चीज़ से खासी दिक्क्त होती है. हमें केरल में बहती सोने की नदियां तो दीखती हैं पर ये छोटी सी बात समझ नहीं आती की स्वाबलंबन कितना जरुरी है? हमको ये बात नहीं समझ आती की महिलाओं की शिक्षा का क्या महत्व है. हमको श्री हरिकोटा अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र की एक भी महिला वैज्ञानिक का नाम याद नहीं होगा परन्तु इन उद्योगपतिओं और नेताओं के टुकड़ो पर पलने वाले भारतीय मीडिया ने ये बात घुट्टी में पिला दी है की सनी लेओनी या करीना कपूर की दिनचर्या के बारे में जानना कितना जरुरी है.

आज के पत्रकार सार्थक पत्रकारिता करने से इसीलिए बचते हैं क्यूंकि उनमे सब्र और संयम ही नहीं है की एक वैचारिक आंदोलन खड़ा करके देश में आरक्षण के नुक्सान गिना सकें ताकि लोग खुद ही आरक्षण लेने से बचें और नेताओं पर जोर डालें की इसको समाप्त करवाओ और हमको देश की मुख्यधारा से जुड़ने दो.

आज के नेताओं को भी ये बात समझ लेनी चाहिए की अगर वो जनता का आह्वाहन करके गैस की सब्सिडी छुड़वा सकते हैं तो आरक्षण के नुक्सान भी युवा पीढ़ी को समझा सकते हैं. आज हम भारतियों को कुछ निपट निडर पत्रकारों की जरुरत है जो लोगों को गर्वीले लेख लिख क्र आरक्षण छोड़ने और इसको समाप्त करने की पहल करने को कहें नहीं तो ये मतलबी नेता लोग आने वाले कई सालों तक पिछड़ी जातिओं को भ्रमित करते रहेंगे.

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