एक गृहणी के मन में कितनी घुटन, आक्रोश और परिकल्पनाएं छिपी होती हैं उन सबका बखान है इस छोटी सी फिल्म में,जिसका नाम है चटनी. टिस्का की त्वचा भोथरी सी क्यों दिखाई है समझ नहीं आया. पार्टी में उनको बड़ा सलीकेदार जरी की साड़ी में दिखाया है और पति को बार काउंटर पे खड़े हुए परायी औरत को छेड़ते हुए.पर घर बहुत पुराना सा है. टिस्का घर की तरह ही बेहद घिसी हुयी दिखी हैं जो शायद इस मूवी की सबसे दिलचस्प कड़ी है. दर्शक उनकी आँखों और होठों के इशारों में बंध सा जाता है.
वो जब कहानी को आगे लेके बढ़ती हैं तो आप हर चीज़, हर लम्हे को जीना शुरू कर देते हैं और यहाँ से निर्देशक अपना मायावी जाल आपके चारों और बुन देता है. आप टिस्का की छटपटाहट को खुद जीना शुरू कर देते हो पर स्क्रीन पे परसे हुये पकोड़े आपको लालच की चटनी में डुबो देते हैं. यह छोटी सी फिल्म आपको अंत तक अपने मोह माया के लंबे धागे में बाँध के ऐसे घुमा के फेंकती है की आप बेहद चकित, भ्रमित और तीखी चटनी से जले हुए होंठ लेके रह जाते हो.
बहुत दिनों बाद एक ऐसी फिल्म देखोगे आप जिसमे नौकरों की मनमानी, पतियों की छलावों भरी आदतें और एक औरत के मन की तिलस्मी कपोल कल्पना देखने को मिलेगी. चंद्रकांता सीरियल देखा हो कभी तो समझ लीजिये की मानव मन क्या क्या रच सकता है एक पल में.
इस फिल्म को देखने के बाद दो तीन चीज़ों से पल भर को आपका भरोसा सा डगमगा सा जायेगा जैसे की नौकरों के हाथ की परसी हुयी कोल्ड ड्रिंक, घर में साथ ही रहने वाली नौकरों की पत्नियां और दूसरों के घर की बनी हरी चटनी. पर कहीं न कहीं ये फिल्म जानी अनजानी कहावतों को जी उठती है. उम्मीद है की इसका सिक़्वल भी बनेगा.
ये फिल्म जरूर देखें अगर आपको जानना हो की गाज़ियाबाद वाले गढ्ढे खोद के क्या क्या दबा देते हैं.
१६-१७ मिनट की ये फिल्म देखने के लिए कृपया यहाँ दिए लिंक पर क्लिक करें. 🙏🏻
https://m.youtube.com/watch?v=nCKZaf3iw4k