अनुज बड़ा हैरान हो गया जब सोसाइटी की मीटिंग में सब ने स्वर में कहा की वार्षिकोत्स्व के डिनर प्रोग्राम के लिए हलुआ और खीर उसके घर से ही आएगा। अभी जुम्मा जुम्मा सात महीने पहले ही वह अपनी पत्नी नीतू और बच्चों के साथ यहाँ शिफ्ट हुआ था। पापा के चल बसने के बाद जब तीनो भाईओं में हिस्से बांटे हो गए तो घर परिवार बिखर गया था। वो घर में सबसे छोटा था। दोनों भाभियाँ इंजीनियर थी। उसकी पत्नी घरेलु पसंद करके लायी गयी थी ताकि घर का काम नौकरानी धोबिन की देखभाल व् उन दोनों भाईओं के बच्चों के ट्यूटरों पर नजर रखने को एक महिला घर में तो रहे। वो समझता सब था परन्तु सबसे छोटा और सबसे कम तनख्वाह पाने वाला सदस्य होने के कारण चुप रहके अपनी नौकरी में व्यस्त रहता था।
थोड़े समय के बाद एक एक करके उसको भी दो बेटे हो गए। पत्नी और भी ज्यादा खटने लगी। पापा सब देखके भी अनजान बने रहते थे क्यूंकि उनकी दवाइओं का खर्चा दोनों बड़े बेटे ही करते।स्वार्थवश वह जानबूझकर दिन भर छोटी बहु को फ़ोन पर आदेश देती दोनों बहुओं के व्यवहार को भी अनदेखा कर देते। नीतू बेचारी दिन भर पूरे घर में काम करती दौड़ दौड़ के। हलकान हो जाती पर चूं न कर पाती।
पूरे घर के लिए नीतू प्याज पुदीने के परांठे आलू की रसीली सब्ज़ी और रबडी बनाती तो कोई ये भी नहीं पूछता की तुम्हारे लिए बचा की नहीं। नवरात्री में दोनों जेठानियाँ भर भर के बच्चों के दोस्तों को बुलवा लेती पर कभी रसोई में पैर भी न रखती। नीतू हलवा चने सुखी सब्ज़ी रायता बना के सुबह से तैयार रहती और गरम गरम
पूरियां उतार के बड़े बड़े थाल बहार भिजवा देती। पसीने में नहाती हुयी खुद के पैर दबाती रहती साथ साथ में। कभी सारा परिवार मेंगो आइसक्रीम की फरमाइश करता तो सारा दिन फ्रिज में चार चार चक्कर लगाके बार बार आइसक्रीम को मिक्सी में घोट घोट के जमाती। क्यूंकि बड़ी जेठानी ने फ़ोन पे आर्डर देके ऐसे ही करने को कहा था। सफ़ेद रसगुल्ले बड़े बड़े ही खाये जायेंगे तो दो किलो पनीर फेंट फेंट के उसके कंधे दर्द करने लगते पर दोनों जेठानियाँ बड़ी बेशर्मी से डोंगे भर भर के अपने रूम्स में ले जाती। नीतू चुपचाप उनका ड्रामा देखती रह जाती। पति अनुज सब देख के भी अनदेखा कर जाता।
कभी किसी भाभी के बच्चे का बर्थडे है तो केक तक उसकी पत्नी घर पे ही बना लेती थी. उसके हाथ के रसीले छोले और बड़े बड़े खस्ता पनीर भरे भठूरे बनते समय जो बढ़िया खुशबु पूरे मोहल्ले में उठती थी उसका तो कोई जवाब ही नहीं था.
फिर ससुर के गुजर जाने के बाद सब कुछ बँट गया। पापा की देख रेख का खर्चा हम करते थे करके उनको छह करोड के घर के बिकने पे कुल डेढ़ करोड दिए दोनों भाईओं ने। जिन भाभिओं के कहने पे वो अपनी पत्नी के खाने में पहनने ओढ़ने में दिन रात गलतियां निकालता था उन भाभिओं ने एक बार अपने पतिओं से यह नहीं कहा की क्यों हिस्सा मार रहे हो छोटे भाई का?
अनुज खून का घूँट पी के रह गया। सत्तर लाख का फ्लेट खरीद के वो इस सोसाइटी में आ बसा था। अब इस सोसाइटी में आते ही उसके परिवार के साथ कई परिवारों का आना जाना शुरू हुआ तो दिन रात उसके घर भीड़ लगने लगी। पत्नी नीतू ने घर पे ही अचार मुरब्बे नमकीन मीठा बनके बेचना शुरू कर दिया। क्यूंकि ज्यादातर कामकाजी महिलाएं हैं सोसाइटी में तो कई महिलाओं ने उसको घर पे ही बच्चों का क्रेच चलाने की राय दे डाळी। नीतू ने हिम्मत करके वो भी खोल लिया।
कोई दो साल गुजरे तो एक दिनअनुज नीतू की कमाई का हिसाब लगाने बैठा तो वह दंग रह गया की घर पे रहके जरा सी तारीफ करने पर उसकी पत्नी ने क्या कमाल के पैसे कमा लिए थे। उसको बहुत पछतावा हुआ की उसने अपनी पत्नी के साथ कितना बुरा सलूक किया था एक समय मे।
पर किस्सा अभी बाकी था जैसेः। एक दिन उसके बच्चों की टीचर ने उसको ईमेल भेज के स्कूल बुलाया और उसकी पत्नी को स्कूल बुलाके बच्चों को कुकिंग करना सीखने को कहा। अनुज को अब समझ आया की कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता बस लगन और समझ होनी चहिये।
उसको बहुत हंसी भी आयी की कहाँ उसकी पत्नी को नौकरानी समझने वाली भाभियाँ अब हजारों रूपये नोकरानिओं को दे रही हैं कहाँ उसकी सीधी साधी पत्नी ने दिन रात रसोई का काम करके अब वो दक्षता हासिल कर ली थी की घर पे रहके ही वो उसकी दोनों भाभिओं से भी कई गुना पैसा कमा रही थी.