अकेली ही रहती हूँ!

अकेलापन की ये कहानी,
जीवन की एक अनजानी निशानी।
विचलित मन की घनी घटाएं,
विचारों की आँधी में बह जाएं।

एकांत में छुपी हुई रहती हूँ,
खुद को खोया हुआ महसूस करती हूँ।
संगीन रातों में आवाज़ नहीं,
दिल की बेचारी उमंग नहीं।

दर्द भरी आँखों में बह रहा हूँ,
खुद को खोई हुई वह ढूंढ रही हूँ।
ज़िंदगी की राहों पर चलते चलते,
खुद का साथी खो गया जीते जी तू।

दिल की आवाज़ को रोक पाती नहीं,
खुद को खोया हुआ वह ढूंढ पाती नहीं।
गुमसुम रातों में चाँदनी की तरह,
मैं खुद को खोई हुई एक चिंतनी।

अनजान राहों में घूमती हूँ,
खुद को खोई हुई मैं ढूँढती हूँ।
गहरी तनहाई के आगे झुकते ही,
खुद को खोया हुआ वह मिलता नहीं।

अकेलापन की ये कहानी,
हर रोज़ नयी ज़िंदगी की कहानी।
यहाँ जीने का मतलब ढूंढ़ना है।

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